अजीब कशिश है
अजीब कशिश है
सुभग नयन में सजा है काजल
अजब कशिश है, अदा है काजल
करे भलाई नजर में छुपकर
सदा नयन का सगा है काजल।
चुभे हैं कांटे जभी जिगर में
तभी नयन से बहा है काजल
रहे सजावट सदा अधूरी
अगर न दृग में लगा है काजल।
कभी दिठौना लिलार बनकर
बुरी नजर को छला है काजल
जख्म जिगर में करे उतरकर
किसी किसी की कजा है काजल।