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Bibha Madhawi

Abstract

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Bibha Madhawi

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विवश इंसान दिखता है

विवश इंसान दिखता है

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विवश इंसान दिखता है,सदा सैलाब के आगे

न बुझती प्यास भी जन की,करे क्या आब के आगे

अगर सामान हो कम तो ,सफर आसान हो जाता

बने लाचार हर राही, अधिक असबाब के आगे

जतन तू लाख चाहे कर,चले मर्जी खुदा की बस

मनुज की एक ना चलती,परम अरबाब के आगे

परिश्रम से बढ़ा आगे,गढ़ा इतिहास भी जग में

मदद सब माँगने आते,यहां पंजाब के आगे

बगल में गाय होती है,पिलाने के लिए आतुर

मगर बछड़ा विवश होता वहां पर जाब के आगे

पदक को जीतने का चाप कंधे पर बढ़ा इतना

कि मंजिल पूर्व पथराया खिलाड़ी दाब के आगे



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