ऐसा मुक्कदर रखते हैं
ऐसा मुक्कदर रखते हैं
शौक नहीं है तारीफों का,
मुल्क के आगे तो ये सौदे बड़े सस्ते हैं।
सोच अपने परिवार कि नहीं,हर गावं,
गली,शहर में हम बसते हैं।
शंका के अंदेशे से ही,तरकीबों के
तार दिमाग में कसते हैं।
कुर्बान होने से नहीं डरते,
कायरों पर हम बिजली से बरसते हैं।
कडक़ती,ठिठुरती ठंड में,
चट्टानों को चीरने का दम रखते हैं।
दर्द-ए-जख्मों की क्या औक़ात,हम तो
मिट्टी की सोंधी खुशबु का मरहम रखते हैं।
वतन के दुश्मनों को भी,
डसने का जहर रखते हैं।
अपनी शानो-रूआब से,
गद्दारों के दिलो मैं भी डर रखते हैं।
अंगारे दबा के सीने में,
शमशीर पे चलने का जिगर रखते हैं।
छिप नहीं पाया कोई भी,
बाज़ से भी पैनी नजर रखते हैं।
अंदाज कुछ खास है अपनी फौज-ए हिन्द का
,इसमें चुन-चुन के सिकंदर रखते हैं।
मर के भी मिट न पाएंगे,"ऐसा मुकद्दर रखते हैं।"
