ऐसा जन -जन का हो व्यक्तित्व
ऐसा जन -जन का हो व्यक्तित्व
जग है नश्वर,
तन क्षणभंगुर,
एक सीमा तक,
सीमित अस्तित्व।
जब नर देह मिली,
इसका सदुपयोग करें,
परहित के सदा सत्कर्म करें।
जो जन-जन के लिए हों प्रेरणाप्रद,
वे कार्य जो मन को संतुष्ट करें।
यह सकल जगत है एक कुटुंब,
जग के सब के सब ही जन,
सच्चे मन से यह अहसास करें।
सर्वहित के पुनीत भाव संग में ही,
जड़-चेतन का है सह-अस्तित्व।
हर व्यक्ति करे चिंता सबकी,
ऐसा जन - जन का हो व्यक्तित्व।