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Anushruti Singh

Tragedy

3.4  

Anushruti Singh

Tragedy

ऐ! मज़दूर मैं क्या लिखूं

ऐ! मज़दूर मैं क्या लिखूं

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मझधार में खड़ी तेरी नाव को लिखूं

या फिर अपनी ज़िंदगी के गुलज़ार को लिखूँ,

आखों से बहती तेरी आसुओं की नदी को लिखूं

या फिर तेरे सूखे गले को लिखूं,

तेरे पैरों के छाले को लिखूं 

या फिर खाने को तेरे लाले को लिखूं,

ऐ! मज़दूर

तू ही बता मैं क्या लिखूं?


तेरी रुकती हुई ज़िन्दगी को लिखूं

या फिर अपनी ख़ुशनुमा ज़िन्दगी को लिखूं,

बिन बुलाए तेरी मौत को लिखूं

या फिर उनसे लड़ने की तेरी ताकत को लिखूं,

दिन में तुझे मिले अंधेरे को लिखूं

या फिर कड़कती धूप में तुझे मिली छाँव को लिखूं,

ऐ! मज़दूर

तू ही बता मैं क्या लिखूं?


घर पहुँचने की तेरी होड़ को लिखूं

या फिर अपनों से अपनी रार को लिखूं,

ज़िन्दगी से मिली तेरी हार को लिखूं

या फिर तेरी जीतती हिम्मत को लिखूं,

तुझे मिलती हुई सांत्वना को लिखूं 

या फिर तेरी टूटी हुई आस को लिखूं,

ऐ! मज़दूर

तू ही बता मैं क्या लिखूं?


टूटते हुए तेरे विश्वास को लिखूं

या फिर तेरे लिए कुछ न कर पाने का अपने गुणगान को लिखूं,

तेरी खामोशियों के शोर को लिखूं

या फिर तेरी चीखों को कर दिये अनसुने को लिखूँ,

तुझे मिलती सितम को लिखूं

या फिर तेरी जय-जयकार को लिखूं,

ऐ! मज़दूर

तू ही बता मैं क्या लिखूं?


तेरे काँटों भरी राह को लिखूं

या फिर अपने ऐशो आराम को लिखूं

तेरे झुलसे हुए हाथ को लिखूं

या फिर तेरे अनसुलझे सवाल को लिखूं

तेरे अनदेखे ख्वाब को लिखूं

या फिर तेरे जलते जज़्बात को लिखूं

ऐ! मज़दूर

तू ही बता मैं क्या लिखूं?



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