अगर।
अगर।
"अगर" प्रभु चरणों में सर झुकाया न होता।
आत्मज्ञान हृदय में समाया न होता।।
भटक जाता कटीले राहों में अब तक।
अगर प्रभु तुम ने चेताया न होता।।
चल रहा था जीवन की अंजानी डगर पर।
अगर तुमने अपने दर पर बुलाया न होता।।
कुमार्ग गामी बन करता रहा मनमानी।
सत्पथ का मार्ग गर दिखलाया न होता।।
बहा जा रहा था अहम की सरिता में।
अगर "रामाश्रम" वाटिका में आया न होता।।
कट रहा था यह जीवन अवसाद ग्रसित में।
सरल साधना का पथ गर दिखलाया न होता।।
ये लिखे गीत अब तलक सूने ही रहते।
अगर जज्बा मोहब्बत का बताया न होता।।
समझ रहा था अपने को अब तलक सब कुछ।
अगर अंतर्मन के बुझे दीपक को जलाया न होता।।
डूबी जाती ये नैया काल चक्र भंवर में।
अगर प्रभु "नीरज" को दीदार कराया न होता।।