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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

Abstract

अगर।

अगर।

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"अगर" प्रभु चरणों में सर झुकाया न होता।

आत्मज्ञान हृदय में समाया न होता।।


भटक जाता कटीले राहों में अब तक।

अगर प्रभु तुम ने चेताया न होता।।


चल रहा था जीवन की अंजानी डगर पर।

अगर तुमने अपने दर पर बुलाया न होता।।


 कुमार्ग गामी बन करता रहा मनमानी।

सत्पथ का मार्ग गर दिखलाया न होता।।


बहा जा रहा था अहम की सरिता में।

अगर "रामाश्रम" वाटिका में आया न होता।।


कट रहा था यह जीवन अवसाद ग्रसित में।

सरल साधना का पथ गर दिखलाया न होता।।


ये लिखे गीत अब तलक सूने ही रहते।

अगर जज्बा मोहब्बत का बताया न होता।।


समझ रहा था अपने को अब तलक सब कुछ।

अगर अंतर्मन के बुझे दीपक को जलाया न होता।।


डूबी जाती ये नैया काल चक्र भंवर में।

अगर प्रभु "नीरज" को दीदार कराया न होता।।


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