अध्यात्म -पथ।
अध्यात्म -पथ।
सुख और शांति की तलाश में, रे! मानव क्यों दर-दर तू भटकता है।
अध्यात्म के पद पर तो चल कर देख, मिथ्या ही समय बर्बाद करता है।
इस अमृत को पीते ही, मदहोश जीव विचरता- फिरता है।
अपने दोषों को दूर करने के खातिर, दूसरों में प्रभु को देखता है।
साथ कर ले उस भेदी का, जो अध्यात्म -ज्ञान का ज्ञाता है।
सतसंगत से सब कुछ मिल जाता, मलिन हृदय साफ हो जाता है।
क्षण भर के सतसंगत को, देवता भी तरसते हैं।
बड़े भाग्य मानुष तन पाया, फिर तू क्यों चिंता करता है।
आत्मज्ञान के खातिर तो, नचिकेता भी ना भटकते हैं।
प्रलोभनों की चिंता ना कर, इस अमृत का पान करते हैं।
आत्मिक शांति पाने की खातिर, ना जाने कितने कष्ट झेलते हैं।
परवाह ना कर तो इस जीवन की, दोषी- पापी भी तर जाते हैं।
इच्छाओं की पूर्ति में न जाने, कितने मारे -मारे फिरते हैं।
"नीरज" यह कभी भी शांत ना होंगी, "प्रभु" ही पार करते हैं।