अधूरी दास्तान
अधूरी दास्तान
क्या मैं एक अधूरी दास्तान हूं..?
लड़की हो कर जन्म लेने से
ऐसे क्यों लगता है समाज को..?
मुझे मुकम्मल होने के लिए
किसी और की क्या जरूरत..?
पहले माँ-बाप आते हैं..
फिर पति और बच्चे ज़रूरत बन जाते हैं..
मेरी कहानी पूरी करने के लिए !
मैं तो खुद की परछाई हूं,
खुद को संभाल सकती हूं,
मैं खुद ब्रम्हांड हूं, अपने आप रहना जानती हूं..
सिर्फ शादी या बच्चे से कहानी पूरी नहीं होती है
खुद की उड़ान में हौसले की ताक़त भरने से होता है।
बेड़ियां मत पहनाओ मेरे पैर में,
खुल के जी लेने दो मुझे
अपनी इच्छा से, अपनी लेखनी से
पूरी हो जाएगी मेरी अधूरी ये दास्तान !