अदालत
अदालत


जिंदगी एक अदालत हो गई
मोहब्बत फिर गुनाह हो गई
मिले आंगन अपने दिल की
बाग दिल फूलों के बेरुखी की
" क़यामत " हो गई ...
सब काबिल थे "वकील "खुद की
तब भी "काबिलियत" जीवन की
मोहताज हो गई...!
शहद थी प्रियसी दिल की
शहर में आते जहर हो गई
हवा भी क्या मुखोटे पहनते हैं ?
गांव सी दिल में कुछ
शहर के दिल में कुछ
और होते हैं !!
सांसों की मिजाज तो यही कहते हैं ,
शुरुआत में मोहब्बत गांव होती है
शहर में आते इस में मिलावट होती है !
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