अभिशप्त योद्धा
अभिशप्त योद्धा
कर्ण सा अभिशप्त योद्धा।
सत्य की तलवार उठा कर
घाव पीठ पर लिए
बढ़ रहा है सर झुका कर।
आज समय जयचंद का है
मंथरा, शकुनि और कंस का है।
दाव चलाएं जो बनकर अपना।
आता हो जिसको केवल ठगना।
लोग उसी के पीछे होंगे
जिनकी बातों में रस भरे होंगे।
मत भूलो चाकू हाथ में लेकर ही
वह मक्खन लगा रहे होंगे।
सत्य की पतवार तो थाम लेना
परंतु कुंठित बुद्धि को भी मत होने देना।
सही समय की प्रतीक्षा करना।
रणछोड़ दास कहलाने से मत डरना।
अभिमन्यु से बन कर जाल में फंस मत जाना।
कर्ण सा होकर अधर्म को साथी ना बनाना
सत्य की लेकर हाथों में मशाल।
मृत्यु का डर मन से निकाल।
धरती पर आने का कारण तू जान।
बचा ले मानवता को हो जा मिसाल।