हमारा शरीर
हमारा शरीर
यारी हो तो पैरों जैसी, जिनमें स्पर्धा वाली बात नहीं
संतुलन बैठाते एक साथ में, होने आगे-पीछे की होड़ नहीं।।
आँखों के जैसा साथ कहीं ना, बंद खुलने में देर नहीं
सुंदरता उनकी मन को भाती, इंसान के बताती जज़्बात सभी।।
बोलना है तो दिल से बोलो, जिह्वा पर अब विश्वास नहीं
मोह-माया में ये फिसलती, हृदय से चलती सांस सभी।।
संपर्ण करना हाथों से सीखो, एक की ताकत दूसरा बने
महसूस ना होती कमी एक की, समाहित करता दूजे शक्ति सभी।।
आत्म मंथन से ना बड़ा ज्ञान है, ये जानना सबकी औकात नहीं
ईश्वर बसता हर जीव में, पर ढूँढता उसको हर कहीं।।