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Vivek Netan

Abstract

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Vivek Netan

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अब काफ़िर हो गया

अब काफ़िर हो गया

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दर्द को भी कब कोई क्या नाम दे 'नेतन'

के अब तो मेरा दर्द भी बदनाम हो गया

सुना है की अब तेरे गली कूंचे में भी 

मेरे इश्क का चर्चा सरेआम सरेबाजार हो गया


क्या सोच के रखा था अपने की दिल में

मगर क्या चाहा और यह क्या से क्या हो गया

एक छोटी सी चिंगारी का फिर आज क्यों

सुलग कर एक दहकता हुआ अंगार हो गया


दर्द जो दिल का राज था एक अरसे से 

आज हर एक हद से कैसे पार हो गया 

करके बगावत खुदा से उसके लिए अब 

पहले तो आशिक था अब काफ़िर हो गया


क्यों कहे कोई के मुझे लगता है डर इश्क़ से  

चलो जो हुआ बो अच्छा ही तो हो गया 

कब से जी रहा था में गुमनाम हो कर के  

तेरे नाम के साथ मेरा नाम तो हो गया 


अब रहा नहीं मुझे रत्ती भर डर बदनामी का 

हम बदनाम तो हुए पर नाम भी तो हो गया  

खुदा हमे तो देता रहे हर रोज ऐसी बदनामी 

इसी बदनामी से तो उनका हमें सलाम हो गया।


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