आत्म आवेग
आत्म आवेग
मैं निःशब्द, निर्वाक भौंचक्क, विस्मित असंगत सब के साथ..!
ज़िन्दगी की हर सतह पर भावों के अभावों के साथ..!
तनाव और हालात के थपेड़े, संवाद के अवसाद में अनुताप के साथ..!
हर पल जलते हुए बदलते शून्य मूल्य जीवन के साथ..!
हृदय में बसी पीड़ाएं, यातनाएं आस्थाओं के साथ..!
अनदेखे, अनसुने, अनसुलझे बदलते समीकरण समय गणित के साथ..!
अवसरवादी, स्वार्थी, बहरूपियों, गिरगिटों के साथ..!
गूढ़ रहस्यसे चेहरा बदल कर चलने वाले मुखोटों के साथ..!
विमर्शों में निरापद उक्तियों में उलझे हुए,
तर्जनी की मिटती रेखाओं के साथ..!
निशब्द आहट, धुंधली राहें, स्वैर दिशाएं
मिटते क़दमों के निशानों के साथ..!
आत्म आवेग के साथ खुद की सांसों को
ढोते हुए फिर भी मै हूं मेरे साथ..!