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ठाकुर छतवाणी श्री मित्रा जसोदा पुत्र

Abstract

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ठाकुर छतवाणी श्री मित्रा जसोदा पुत्र

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जीवन रहस्य

जीवन रहस्य

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ऊंगली पकड़कर चलता हूं

या कोई मेरी ऊंगली पकड़कर चलाता है,

ये जिंदगी है यारों

यहां पे कोई चलता है तो कोई यूं ही चलाता है।


सूर्योदय के पहले सोचता हूं आज क्या होगा?

सूर्यास्त के बाद सोचता हूं कल क्या होगा?

ये दुनियां है यारों 

यहां हर शक्स रहस्य से जीता है 

और रहस्य में मरता है।


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