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Pooja Upadhyay Chauhan

Abstract

4.9  

Pooja Upadhyay Chauhan

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आसमान

आसमान

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आँखे खुली थी सूरज के साथ ही, 

बस जागे नहीं थे, कोई फरियाद थी।


घर के बाहर जाके देखा,

भीड़ में लिपटी ज़िंदगी मिली, 

कोई शिक्षा तो किसी ने

नौकरी से नैया चलाई थी। 


क्या ज़रूरी था यूँ

घिसी-पिटी जिंदगी से

रोज़ रूबरू होना, 

बेवजह यू रोज़ खुद को

मौत से मिलाना। 


उड़ान सपनों की

एक बार और भरते हैं, 

अंजाम की परवाह

नहीं करते हैं। 


दुनिया सामने खड़ी होगी,

जब सपनों को चुनोगे, 

ताली की गूँज दिल में बजेगी,

जब बेड़ियाँ तोड़ के तुम

आसमान छुओगे। 


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