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Rakesh Sahu

Abstract

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Rakesh Sahu

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आशियाना

आशियाना

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मत रख तू उम्मीदें ये फरेब दुनियां से

बन जा तू आजाद पंछी इस आसमान के ;

नसीब तो नहीं होगी तुझे यहां आशियाना दूसरों के,

अभी भी वक़्त है

बना ले आशियाना  तु खुद के।


कोई नहीं तेरे अपने यहां

बस सब एक मृगतृष्णा के भ्रांति है;

बेहे जाएगी तेरी अन गिनत आंसू यहीं

पर संभालने वाला कोई नहीं है ।


कदर तो तेरी अपनों ने नहीं किया

समझ लिये के तू परायी है;

अब आशियाना भला तुझे कैसे मिले,

क्योंकि तू तो एक कैद पंछी है ।

NB:-कैद पंछी Represent women's freedom


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