आस बाकी
आस बाकी
कहने को सब कुछ है लेकिन किसी की तलाश बाक़ी,
भर गए सब घाव मगर दिल में छोटी सी फ़ांस बाक़ी।
जिंदगी गुजर रही है, घड़ी दर घड़ी सांस लेते,
मगर इस रूह जो को चैन दे वो सांस बाक़ी ।
सजी है महफ़िल कद्रदानों से , और चाहने वालों से,
करे जो मन की बात तसल्ली, बैठ मेरे पास बाक़ी।
मस्त है सब यहाँ और, जश्न ए माहौल चारों ओर है,
रूह से रूह का मगर अभी तक रास बाक़ी।
मिकते हैं हर एक रोज नए कुछ लोग इस जहाँ में,
मगर खो जाऊँ जिसकी आँखों मे वो खास बाक़ी ।
हो गयी मन्नते पूरी मेरी, खुदा का शुक्र गुजार हूँ,
इक मिल जायें वो जाते जाते थोड़ी सी आस बाक़ी।

