आंचल की छाँव बदली नये दौर की चकाचौंध
आंचल की छाँव बदली नये दौर की चकाचौंध
नये जमाने ने कुछ अहसास छीन लिए
माँ प्यार से ढकती थी सिर पर पल्लू
क्षण आदर वाले बदल गए।
मीठी हिंदी के साये मे
जिन्हें माता-पिता बुलाते थे
वह शब्द पुराने, सम्मान मे लिपटे होते थे।
Mom-dad मे बदल गए।
हम न बदले तुम न बदले
कुछ रिश्तों के मायने बदल गए।
बचपन की स्मृतियों को देखकर
माँ का पल्लू याद आया।
जब बडे प्यार से भोजन कराने के बाद
मुँह पोछने के काम आता था।
गर्म वस्तु पकडने से लेकर,
पिता जी चरण स्पर्श करते समय
चमकते जूतों की धूल भी साफ कर आया।
तेरी श्रद्धा से भरी आँखे, प्यार भरा साया।
माँ तेरे पल्लू का कमाल भी तब देखा
जब मेरी चोट पर तूने पल्लू का चीर बढाया।
अनुसूया कहूँ,अन्नपूर्णा माँ
जब तेरे पल्लू ने भोजन परोसने से पहले
पल्लू से पात्र भी साफ किया।
तेरे निर्मल मन की भांति
मेरी बुरी बलाओं को तेरे पल्लू ने
झाड़ दिया।
माँ का पल्लू,पिता जी की साइकिल
खुशियों की बरसात में
दुखो के छींटे पोंछता नेत्रों से छलकते
वेग को चुपके से पोछने
तेरा पल्लू साथ निभाता था।
तेरे पल्लू मे मेरा संसार सिमट जाता।
जब दुखो के थपेडों मे थक कर तेरी अंक
में सो जाता।
उस पल तेरा पल्लू पंखा बन शीतलता
की ठंडक दे जाता।
सुखों की सुहानी अनुभूति उस पल तेरा
पल्लू करवाता।
आज माँ भी, पिता जी भी है।
नई पीढी के लिए अहसास कुछ नये है।
लेकिन माँ के पल्लू की यादें नहीं है.....
माँ का पल्लू सम्मान का प्रतीक..........