आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ?
ये हड़बड़ाहट, भाग दौड़, थकान
आखिर क्यूं ?
हम खुद से ही इस कदर अनजान
आखिर क्यूं ?
जब हम भी रह रहें हैं और तुम भी रह रहे,
फिर घर हमारा क्यूँ नहीं मकान
आखिर क्यूं ?
जब हम भी हँस रहे है और तुम भी हंस रहे,
फिर आँख में आँसू लिए मुस्कान आखिर क्यूं ?
जब हम भी हैं अनमोल और तुम भी हो अनमोल,
फिर सज रही ये रिश्तों की दुकान, आखिर क्यूं ?
मंजिल बहुत करीब है क्या चाहिए तुम्हें,
जो काम ही ना आ सके सामान
आखिर क्यूं ?