अन्तर
अन्तर
जीवन के युद्ध में, मैं वरदान बन गई।
कभी ढाल बन गई तो कभी म्यान
बन गई।
हम साथ साथ खेले और साथ ही बढ़े,
तू रत्न बन गया मैं सामान बन
गई।
कभी तलवों रौंद डाला, कभी शीश धर लिया,
सब जानते हुए भी अनजान बन
गई।
गलती तो थी तुम्हारी गलती भी थी हमारी,
तू देव ही रहा मैं पाषाण बन गई।
थी तो कठिन पहेली ना बूझ सका कोई,
जो प्यार से छुआ तो आसान बन
गई।
