आकांक्षा
आकांक्षा
जिंदगी की इस रफ्तार को,
मैंने आज जान लिया।
मतलबों की लगी होड़ में,
आकांक्षाओं को भी मैंने पहचान लिया।
मुलाकात जब पहली बार हुई,
अपनी कमी की तकरार हुई,
सुधार की तकाजा जगी
मैंने उन्नत मस्तक करना ठान लिया।
अपनी घाव की दर्द भी उसी
समय खुद का निदान किया।
कुछ कर गुजरें ऐसा
गुणगान करे सारा जहां,
खुशियों की लगी होड़ में,
स्वार्थ की अंधी दौड़ में,
परहित की लालसा उफान लिया।
मैंने मुझे पहचान लिया,
मेरी आकांक्षा मैंने पहचान लिया।