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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

आका का हुक्म

आका का हुक्म

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चलो

अच्छा हुआ

अब हम दो

कदम आगे

तो चले !

टूटा सियासी

का चलन

अब तो हम

गले मिलने

को चले !


मलाल तो

हमें इतना है '

जहर दुश्मनी

का फैला कैसे ?

घात -प्रतिघातों

से अपना

घृणित छवि

विश्व को

दिखाया कैसे ?


सीमाओं पर

लोग हमारे

मरने लगे !

आतंक का

ढिंढोरा सदा

पिटते चले !


'जबतक सीमा

पार से आतंक

नहीं मिटेगा

तब तक

विभेदों का

वातावरण

नहीं हटेगा !


क्रिकेट बंद ,

गजल बंद ,

यहाँ तक कि

पुस्तक विमोचन

नहीं होने देंगे !

कटु भाषाओँ

के प्रहारों से

ह्रदय विदीर्ण

होते रहेंगे !


पर यह

अद्भुत चमत्कार

हुआ कैसे ?

जलवायु की

चर्चा में

यह बर्फ

इतना शीघ्र

पिघला कैसे ?


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