STORYMIRROR

Suvarna Jadhav

Abstract

4  

Suvarna Jadhav

Abstract

आजाद

आजाद

1 min
23.9K

देखो आजाद हो गई मैं

गगन में उड़ रही हूं मैं।


खोल दी है बेडीया मैंने

तोड दिए हैं सारे बंधन मैंने।


रुढी परंपराओं को तोड चुकी हूं मैं

अपनी मर्जी से जी रही हूं मैं।


मेहनत और लगन से बदलेगी हवा सारी

मुठ्ठी में कर सकती हूं मैं दुनिया सारी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract