आज की नारी
आज की नारी
आज की नारी
अपनी शर्तों पे जीना चाहती है
कभी किसी की नही सुनना चाहती है
तोड़ सारी बंदिशों की
बेड़ियों उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहती है
खुली हवा में साँस लेना चाहती है
किसी के बनाये नियमो पे
खुद अपने नियमो पे चलना चाहती है
किचन से बाहर भी अपनी
पहचान बनाकर
कुछ पल अपने लिये जीना चाहती है
वो भी एक इंसान
उसका भी स्वभिमान है
अपने स्वभिमान को बनाये
रखकर जीना चाहती है
किसी धन दौलत की नही है
चाहत उसे
बस प्यार के मीठे बोल चाहती है.
