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Rashmi Sinha

Inspirational

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Rashmi Sinha

Inspirational

आज की नारी

आज की नारी

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आज फिर वही सदियों पुराना नज़ारा था,

पर इस बार----

लक्षमण नही, रथ नही----

खुद राम ने---

जनकसुता को उसके घर छोड़ आने,

अपना वाहन निकाला था।

उस 'नराधम' की संतान की,

माँ बनने वाली सीता---

जिसे उसने दहेज की खातिर,

न जाने कितनी बार मारा था।

शांत थी सीता--

क्योंकि नही थी वो पौराणिक,ये थी---

जीती जागती , हाड़-मांस की सीता,

उबल रहे थे, जिसके मन मे विचार,

कुछ सोच, कार रोकने का किया इशारा था,

 दे धन्यवाद, बढ़ चली वो एक ओर,

राम ने भी चैन की सांस ले,

उससे किया किनारा था।

खुश थी सीता,

दुष्कर था उस घर मे रहना,

औ' सहना----

सिद्ध करना था, खुद को और,

कोख में पल रहा, शिशु ही सहारा था,

पढ़ी लिखी थी, जानकी, 

बेशक बाधाएं आएंगी पर,

ये बाधाएं ही तो बढ़ाएंगी आत्मविश्वास,

और वर्षों बाद एक दिन----

बस रहे थे, जो आंखों में सपने,

साकार होकर सामने खड़े थे वो सपने

काश! वो सीता भी लड़ी होती,

देकर न अग्नि परीक्षा,

अपनी परीक्षा खुद ली होती,

अपनी परीक्षा खुद ली होती-----


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