आज का बाइकर बेटा
आज का बाइकर बेटा
जेब में नहीं (अपनी कमाई का) एक भी रुपया,
फिर भी लाखों की 'मोटरबाइक' पे
'कालेज' को निकलता
आज का तथाकथित 'ऑल्ट्रामडार्न' बेटा ...
पिता बेचारा पसीना पोछ-पोछ कर
बाज़ार में सुबह-शाम सब्जियां बेचा करता ;
माता बेचारी दिन-रात "हैन्डलूम"
में कपड़ें तैयार करने में
अपना अधिकतर समय बिताती :
बीच-बीच में आँखें मलती,
कमर पकड़ती, झपकियाँ लेतीं ...
मगर अपने इरादों को कभी
कमज़ोर न करती ...
फिर भी बेटा चलते-चलते
'मोटरबाइक' की चाभी घुमाता,
हिलता-डुलता मस्तमौला-सा
से घर से बाहर निकलता ...
बेटा मगर 'कालेज' में खुद को
किसी 'हिरो' से कम न समझता ...
किसी-न-किसी के
मन को ज़रूर भाता ...!
अपने 'गर्लफ्रैंड' के संग
"मोटरबाइक" पे घूमता-फिरता नज़र आता...
इस दुकान से उस दुकान पे
"गर्लफ्रैंड" के लिए "फैशन" का साज़ो सामान खरीदता
(जानपहचान वालों से मुँह छुपता फिरता...
"मास्क" पहनकर सुरक्षित रहता)...
"रेस्तरां" में अल्पाहार करता हुआ
किसी "ए.सी." सुविधायुक्त होटल में
पेटभर तामसिक आहार करता...
बेचारी माँ बेचैनी से आँखें बिछाए
अपने "ऑल्ट्रामडार्न बाइकर" बेटे की
राह देखती थक-हार के जब
प्रायः सो जाया करती है ...
तब सुबह का भूला, अक्सर देर रात को
अपने किराए के मकान का
दरवाज़ा खटखटाता -- "माँ ! माँ !" पुकारता जाता ..?।।।।।।:...!
(बड़ी देर से बेटे को अपने
परिवार की याद तो आती है...
क्या इसीलिए मोहांधावस्ता में
इंसान अपना आपा ही खो देता है ???)
घर पर आकर वही बेटा,"माँ मुझे भूख नहीं...!"
कहकर सीधे बिस्तर पर लेट जाता ...
कानों पे "हैडफोन" लगाकर
"अंग्रेजों की धुन में" बिस्तर पर ही
अजीबोगरीब तरीक़े से हिलता-डुलता ...
कभी बीच में गाना रोककर
माँ से एक गिलास पेयजल माँगता ...
पानी पीकर मन चाहे तो
देर रात तक "एन्ड्राइड मोबाइल" पे
अपने "गर्लफ्रैंड" के संग
बेसिरपैर बातें कर
सारा माहौल बिगाड़ता ...
इस बात का एहसास दिलाता कि
माँ-बाप से अपना स्वार्थ बड़ा ...
हाँ, ऐसा ही दिखता है
आज का "बाइकर" बेटा...!!!
(ऐसा न बन जाए किसी का बेटा...
सचेत रहें, हे परिश्रमी पिता-माता !)