आज भी है ज़िन्दा कहीं
आज भी है ज़िन्दा कहीं


तुम्हारे साथ बिताये लम्हों की कसक,
आज भी है ज़िन्दा कहीं,
मैं भूलना भी चाहूँ अगर,
तब भी रहे वो यहीं कहीं।
मैंने चाहा था तुम्हें ज़िस शिद्दत से,
वही चाहत दिखी मुझे तुममें कहीं,
हम मिलते रहे, तड़पते रहे,
हमारी चाहत में ना हुई कभी कोई कमी।
तुमने छुआ नहीं कभी मुझे,
मैंने तब भी पा ली सपनों की ज़मीं,
वो वास्तविकता से परे एक आकर्षण था,
जिसमे पिघले दो नये ज़िस्म हसीं।
जिसने जोड़ा हमें वो इंटरनेट था,
जहाँ लगती थी एक दुनिया नई,
अब भी कसक जब उठती है,
तब मिलते हैं हम दोनों वहीं।
कभी ना मिलने की वो कसम,
जो खाई थी हमने कभी वहीं,
वो आज भी देखो कायम है,
क्योंकि हम मिलते हैं सिर्फ वहीं।
एक आकर्षण बहुत निराला सा,
सच होते हुए भी जो जिस्मानी नहीं,
तुम्हारे साथ बिताये लम्हों की कसक,
आज भी है ज़िन्दा कहीं।