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Archana Saxena

Abstract

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Archana Saxena

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आहट

आहट

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आहट सुनाई देती है क्या कोई खड़ा मौन?

दे रहा है दस्तक दरवाजे पर ये कौन?


इक अंधकार सा जो फैला था चहुँ ओर

शायद वह छँट रहा है और हो रही है भोर


सिसक रहा था इन्सां खुशी की तलाश में

अब खिल रहे हैं पुष्प भी देखो पलाश में


घिरी थी बदली जो किया काला आसमां

अब ले गई उसे भी पवन दूर तक उड़ा


खिल गया है इन्द्रधनुष आसमान में

सतरंगी छटा बिखर गई है जहान में


अब पहले की तरह ही मुस्काएगी दुनिया

संकट से हँसते हँसते पार पाएगी दुनिया।


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