आदमी
आदमी
ज़िंदगी मोहब्बत के लिए हुआ करती है,
लोग नफरत के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
घर के आपसी रिश्तों में दरार कर रहे हैं,
मां बाप के अरमानों का बंटाधार कर रहे है।
सामने जो है वह उन्हें दिखाई नहीं देता,
आदमी व्हाट्सअप से अब ज्ञान लेता।
फेसबुक पर जाकर खुशियाँ मनाता,
लाइक और कंमेंट को उपलब्धि बताता।
नाते रिश्ते सभी वह भूलने लगा है,
आभासी दुनियाँ में झूलने लगा है।
पिज़्ज़ा और बर्गर की दाबत उड़ाकर,
बीमारी से रिश्ता जोड़ने लगा है।
चालाकियों से गहरा रिश्ता हुआ है,
आदमी आज फरिश्ता हुआ है।
अपने को सबसे ही अच्छा बताता,
अंदर से हाल उसका खस्ता हुआ है।
झूठ की चादर में मुह छुपाये पड़ा है,
मक्कारी की पगड़ी को लेकर खड़ा है।
नफरत की बैसाखी ले आगे बढ़ा है,
स्वार्थ की मदहोशी का नशा चढ़ा है।