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SNEHA NALAWADE

Abstract

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SNEHA NALAWADE

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35 वां दिन

35 वां दिन

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प्रिय डायरी,

35 वां दिन 35 वां दिन,

मुझे नहीं लगता कभी कोई

इतना घर पर रहा होगा


जितना पिछले एक महीने से

हम सब घर में रह रहे है

इससे सबसी बडी बात जो

हमने सिखे है वह यह है कि

जो है उसमे ही खुश रहो जी है


पहले कहा कुछ होता था

आज तो मोबाइल के एक

बटन दबाओ जो चाहे वो

मिल जाता है पर इसके चलते


हम कितने आलसी हो गए हैं

कुछ करना नहीं चाहते उपर

से होने वाली तकलीफ अलग

आखिर नुकसान किसका हो रहा है

इस दरम्यान हमारा ही ना


तो इंतजार किस बात का है

चलिए फिर कुछ अलग करते हैं

जो हमारा दिल चाहिए।


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