एक सैनिक की कलम से......
एक सैनिक की कलम से......
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आज से कुछ वर्षों पहले, हम दोनों एक साथ स्कूल से निकले थे। तुमने सर्वश्रेष्ठ कॉलेज में दाखिला लिया और मैं एक सैनिक बनने की राह पर चल पड़ा। तुमने मन लगाकर पढ़ाई की और कॉलेज लाइफ के मज़े भी लिए, मैं जी-जान एक कर अपनी माँ की सुरक्षा के लिए परिश्रम करता रहा। तुमको जब डिग्री मिली, मुझको मिला आर्मी में सैनिक होने का सम्मान, तुमको जब उच्च पोस्ट पर नियुक्त किया गया, मुझको भेजा गया रेगिस्तान। तुम अपने ए०सी० कमरे में 9 से 5 काम करते और मैं दिनभर कड़ी धूप में बॉर्डर पर पहरा देता। तुमने बड़ा घर बनाया, गाड़ी भी ख़रीदी, मैं अपने कच्चे पुराने घर में अपने परिवार को छोड़ देश की सेवा में लग गया। तुम रोज़ अपने परिवार से मिलते, संग रहकर हंसते गाते, मैं उनकी एक झलक के लिए भी तड़पता रहता। तुम अपनी माँ की गोद में सर रखकर सोते और मैं अपनी भारत माँ से लिपट कर।
समय ऐसे ही बीत गया, उम्र हो गयी थी अपना घर बसाने की, ज़िन्दगी में नए रंग भरने की।
हो गया विवाह, बस गया अब घर। तुम्हें छुट्टियां मनाने विदेश भेजा गया और मेरे पास आ गया फ़ौरन बॉर्डर पर पहुंचने का फ़रमान। तुम अपने परिवार के साथ सुख-दुख बांटते रहे और मेरा परिवार मेरी राह देखता रहा।
तुमने अपने बेटे को इस दुनिया में आते देखा, उसे पहला कदम लेते देखा और मुझ तक मेरे बेटे के जन्म का खत भी 15 दिन बाद पहुंचा। जी चाहता था जल्दी से जाकर लगा लूँ उसको सीने से, अपने नन्हे से खिलौने से जी भरकर खेलूँ, पर आड़े आ गए तभी मेरी मातृ-भूमि के दुश्मन और बिख़र गया मेरा यह स्वप्न।
तुम जब शाम को अपने घर जाते, तुमको देखकर वो मुस्कुराता, तुम्हारा बेटा तुम्हारे गले लग जाता। मैं जब एक साल बाद घर पहुंचा, वो मुझसे दूर भागा और छुप गया अपनी माँ के पीछे, शायद अजनबी समझ बैठा था वो मुझको। मुझे देख माँ-बाप की आँखों में चमक सी आ गयी, पत्नी के चेहरे पर वो मीठी मुस्कान सी आ गयी, घर में खुशियों की लहर ऐसे उठी जैसे मानो आ गया हो कोई त्योहार।
तुमने अपने बेटे को इंजीनियर बनने का ख्वाब देखा और मैंने उसे अपनी तरह एक सैनिक बनाने का, वतन के हवाले करने का।
साथ में हंसते-खिलखिलाते एक महीना बीत गया था, अब आ गया था वापस लौटने का वक़्त। पर इस बार बात अलग सी थी कुछ। परिवार मेरा चिंतित था, घबराया हुआ था क्योंकि इस बार जाना था मुझको कश्मीर। तुमको अपने कंपनी टूर पर जाना था विदेश और मुझको?.......मुझको अपनी माँ की सुरक्षा करने, बॉर्डर पर पहरा देने। घर पर मैंने मुस्का कर सबको यही समझाया, जल्दी लौट कर आऊंगा यह दिलासा दिलवाया।
मन तो मेरा भी कुछ अशांत सा था पर फ़र्ज़ के आगे भी कुछ न था। अपनी पत्नी को गले लगाकर हम दोनों ने वादे किए थे कि जल्द आएंगे लौटकर, फूलों और तोहफों के संग अपनी शादी की सालगिरह के दिन। निकल पड़े फिर से हम दोनों अपनी-अपनी राहों पर अपना-अपना कर्तव्य निभाने, तुम अपने ऑफिस में व्यस्थ हो गए और में LoC पर।
अपनी कंपनी की कामयाबी की वजह बने तुम, इसलिए तुम्हारे लोगों ने तुम पर फूलों की वर्षा की, मैंने अपने देश का गौरव बढ़ाया, उसकी रक्षा की तो मेरे लोगो ने ही सियासत के चलते मुझपर ही पत्थर बरसाये। तुम घर लौटने की तैयारी में लग गए और मैं भी पर तभी दुश्मनों ने हमला बोला, पैदा कर दिया युद्ध का माहौल। डट कर मैंने सामना किया, अपनी माँ का शीश न झुकने दिया, अंतिम सांस तक लड़ता रहा और शान से फहरा दिया अपना तिरंगा पर तभी आँखों के सामने आ गया था कभी न मिटने वाला अंधेरा।
समय आ गया अब हम दोनों के अपने-अपने घर लौटने का, अपने वादे निभाने का। तुम पहुंचे गुलदस्ता और तोहफ़े हाथ में लेकर, अपनी पत्नी के लिए सुहाग की सौगात लेकर, मैं भी आया फूलों से लदा, और अपने तिरंगे में लिपटा। समय जैसे थम सा गया था, पूरे घर में सन्नाटा पसर गया था आखिर बूढ़े माँ-बाप का सहारा मौन हो गया था, एक बेटे के माथे से पिता का साया चला गया था और छिन गया था एक पत्नी से सुहागन होने का अधिकार। विलीन हो गया पंचतत्वों में, बंदूकों की सलामी के साथ। वादा मैंने भी निभाया था, फूलों के संग मैं आया था बस तोहफे में अपने संग अपने देश का तिरंगा और एक खत लाया था। खत में मैंने लिखा था, "माँ, अगर मैं लौट कर ना आ पाऊँ तो क्षमा कर देना, क्योंकि तेरा बेटा अपनी भारत माँ पर अपने प्राण न्योछावर कर चुका होगा। पापा मुझको क्षमा कर देना, आपका सहारा न बन सका मैं। मेरी पत्नी से माँ बस इतना कहना कि तुम जैसी बन सके वो और तुम्हारी तरह ही अपने जिगर के टुकड़े को भी देश को सौंप दे वो। अगर दोबारा जन्म हुआ, तुम्हारा बेटा ही बनना चाहूँगा माँ, फिर से सीमा पर जा कर देश की ढाल मैं बन जाऊँगा।" पढ़कर मेरे खत को अब आँखें भर आयीं थी सबकी, गर्व से सीना भी चौड़ा हो गया।
मित्र, इसी तरह तुम आगे भी अपनी कहानी लिखते चले गए पर मैं इतना ही लिख पाया, शहादत को अपने नाम कर, खत्म हो गया मेरा सफ़र।