व्यथा
व्यथा
"रमेश, ये कौन हैं ?" अपने बेटे के साथ बैठे व्यक्ति को पहचानने का प्रयास करते हुए लाठी के सहारे खड़ी बूढ़ी महिला ने अपने बेटे से पूछा।
"जब तुम्हें याद रहता ही नहीं तो क्यों बार-बार पूछकर मेरा टाइम वेस्ट करती रहती हो ? हफ्ते भर पहले जब ये आए थे तब भी बताया था कि ये मेरे नए बिजनेस पार्टनर है। उससे पहले भी तीन बार बता चुका हूँ। महीने भर में एक सवाल पाँचवीं बार पूछ रही हो। अब यहाँ खड़े-खड़े मेरा मुँह मत देखो, अंदर जाओ। हम लोग एक जरूरी चर्चा कर रहे हैं।" रमेश ने डाँटते हुए गुस्से से जवाब दिया और फिर अपनी माँ की ओर से ध्यान हटाकर अपने पार्टनर के साथ चर्चा में व्यस्त हो गया।
वृद्ध महिला की आँखें डबडबा गई। उसके स्मृति पटल पर सालों पुराना वह दृश्य उभर आया, जब रमेश बचपन में एक ही दिन में कई बार कौए को देखकर पूछा करता था कि ये क्या है और वह हर बार प्यार से उसे बताया करती थी कि कौआ है।
और आज वही रमेश महीने भर में एक सवाल केवल चार-पाँच बार ही पूछने पर ही इतना चिढ़ गया कि पराये व्यक्ति के सामने ही अपनी माँ को बुरी तरह से फटकार दिया। ये सोचकर उस वृद्ध महिला का मन बहुत आहत हुआ पर वह आँसू पोंछकर डगमगाते कदमों से अंदर जाने के अलावा कर भी क्या सकती थी।