स्वच्छता अभियान
स्वच्छता अभियान
सवेरे-सवेरे मुँह अंधेरे जब बस पूरब दिशा में हल्की सी लाली आकाश की स्याह चूनर हटाकर झाँक रही थी, मैं बस से उतरकर पैदल गाँव जाने वाली सड़क पर चल पड़ी।
अभी कुछ ही दूर गयी थी कि अचानक आठ दस औरतों का झुंड खेतों से मेड़ की ओर आता दिखाई दिया, आश्चर्य हुआ इतनी सुबह-सुबह ये औरतें कहाँ जा रही हैं; मैं रुक गयी, वो सब भी मुझे आश्चर्य से देख रही थीं।
निकट आने पर एक बुज़ुर्ग सी औरत ने पूछा,”ए बिटिया इत्ते मुँह अंधेरे कहाँ से आ रही हो और कहाँ जाएक है तुमका ?”
मैंने कहा, “ गाँव को ही जा रही हूँ पास के शहर में मेरा घर है, गाँव के स्कूल की नयी टीचर हूँ; आज पहला दिन है, समय का अंदाज़ा नहीं था. लगता कुछ ज़्यादा ही जल्दी पहुँच गयी।”
“ओह ! बहुते नीके भवा जे, नयी मास्टरनी है जे तो अरे बाह बहुते बढ़िया कित्ते दिन भए पुरानी मास्टरनी का गए चलो कोउ तो आवा लरिकन का पढ़ावे ..।”
“अब चलो भी बहुत अबेर हुई गए आज चाची।”
“अरे लेकिन आप लोग इतनी सुबह कहाँ से आ रही हैं..?”
अचानक सब पल्लू में मुँह दबा कर हँसने लगी, मुझे आश्चर्य से देखते हुए देखकर काकी बोलीं, “अरे बिटिया कहाँ जइबे हम सब इत्ते सवेरे खेतन मा हल्के होय के सिवाय..?”
“अरे लेकिन मुझे तो बताया गया है कि गाँव में दो बड़े शौचालय बने हैं...फिर भी आप लोग...?”
“हाँ बिटिया बने तो हैं पर उहाँ दुईनन मा गाँव के मरदन का ही डेरा लगा रहत है...गाँव की बहू बिटियन का तो उते जावब ही मुहाल है .. कउनो सुनवाई नाय ...पुरानी मास्टरनी एही बदे तो छोड़ गई ...भई हम तो अइसन ही भले...!”
“कउनो हिम्मत करके जाए भी तो रोवत हुए आए...अब तुमही बताओ का कीन जाये ..?