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Raghav Dubey

Drama Inspirational

2.5  

Raghav Dubey

Drama Inspirational

मैं भी तो बेटी हूँ

मैं भी तो बेटी हूँ

2 mins
942


कपूर साहब के यहां चल रही पार्टी पूरे सबाब पर थी, शहर के नामी गिरामी लोग इसमें उपस्थित थे, और हो भी क्यों न, कपूर साहब की इकलौती बेटी की इंगेजमेंट पार्टी जो थी।

हल्की आवाज में बज रहे रोमांटिक गानों ने पूरे माहोल को रंगीन बना दिया था और रही सही कसर को विदेशी शराब ओर उसे परोस रही खूबसूरत लड़कियां पूरा कर रही थी।

शराब और अमीरी का नशा सबके सर चढ़ कर बोल रहा था...... तभी चटाक् ....... चटाक् .......चटाक् ..... की आवाज से महफिल में सन्नाटा छा गया।

एक जगह कुछ लोग जमा थे, पास जाकर देखा तो कपूर साहब अपना गाल सहला रहे थे।

"अरे क्या हुआ कपूर साहब ?" -शर्मा जी ने खींसे निपोरते हुए कहा।

"जी कुछ नही..."

"ये कुछ नही बताएंगे आप लोगों को, मैं बताती हूँ .. " - ड्रिंक सर्व करने वाली एक लड़की ने कहा।

"तू चुप कर और निकल यहाँ से, दो कौड़ी की लड़की " - कपूर साहब दहाड़े

"क्यों चुप रहूँ मैं, हाँ मै हूँ दो कौड़ी की, अरे साहब ! मैं आप लोगों को शराब परोसती हूं वह मेरी मजबूरी है ... मेरी माँ बिस्तर पर पड़ी है उसकी दवा..... छोटे भाई की पढ़ाई ..... और सबसे बड़ा यह पापी पेट ... ये मजबूरी है मेरी .... मैं शराब जरूर परोसती लेकिन अपना जिस्म नहीं ...."- वह लड़की आवेश में कहती जा रही थी - " ... ये कपूर साहब अपनी हवस मिटाना चाहते थे ... ये भूल गए थे कि वो भी मेरी हमउम्र बेटी के पिता हैं, ... कपूर साहब जैसे लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि मै भी एक बेटी हूँ, बेशक, उनकी न सही किसी ओर की ... लेकिन हूँ तो बेटी ही ....

कपूर साहब सर झुकाए निशब्द खड़े हुये थे और पार्टी में उपस्थित लोग स्तब्ध हो कभी कपूर साहब की बेटी को देखते तो कभी बेटर की ड्रेस में लड़की को...


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