कफन के साये में
कफन के साये में
शहर के बीचो बीच काली चमचमाती बलखाती सड़क पर, जहाँ एक ओर ऊंची ऊंची इमारतें अपने बड़प्पन का परिचय दे रही है और दूसरी ओर ग़रीबों भिखारियों ओर समाज के सताए लोगो का ठिकाना फुटपाथ है।
उसी फुटपाथ पर आज हाहाकार मचा हुआ है वहाँ किसी अपाहिज हरिया की मौत हो गई है l किसी को कोई लेना देना नहीं है, बस कुछ तमाशबीन उसकी लाश के चारों ओर अनर्गल बातें करते हुए शोक व्यक्त कर रहे हैं जिनमें मैं भी एक था।
तभी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने शंका जाहिर की कि उस अभागे का अंतिम संस्कार कौन करेगा ?
भीड़ में सुगबुगाहट होने लगी.. कि उसके परिवार में कौन है, कोई है भी या नहीं, और पता नहीं क्या क्या l
तभी पता चला कि वह बिल्कुल अकेला था, यह जानकर लोगो के ह्रदय से दया फूटने लगी और एक चादर बिछाकर, उसके कफन का इंतज़ाम होने लगा, देखते देखते उस चादर पर सिक्के व रुपये बरसने लगे।
कुछ ही देर में अंतिम संस्कार का सामान लाया गया, और शव को कफन में लपेटकर उसे विदा करने की तैयारी होने लगी, कुछ समाज सेवी भी आ गए थे लेकिन मुझे उन सब से अलग उनके दिखावे से अलग हटकर हरिया की आँखो में देखने में आकर्षण हो रहा था, मानो उसकी आँखें कह रही हो…बाबूजी, मैं जिंदगी भर सरकार, समाज के लिए उपेक्षित रहा, यदि इन लोगो ने, आपके समाज ने थोड़ी सी दया दिखायी होती तो मैं भी इस भीड़ में शामिल होताl यही सिक्के यदि मेरे खाली कटोरे में पड़े होते तो शायद मैं भी इस भीड़ में शामिल होताl
यदि यही दया उस गाड़ी वाले ने दिखाई होती जिसने मेरी दोनों टांगे कुचल दी तो मैं भी अपने पैरों पर खड़ा होकर अपने कर्मो से समाज के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ा होता, शायद मैं उपेक्षित न होताl
इसकी दर्द भरी जिंदगी से जुड़ भी न पाया था कि, राम नाम सत्य है, के ज़ोरदार नारे ने मुझे झकझोर के रख दियाl
चार कंधो पर हरिया अंतिम यात्रा पर जा रहा था उसके चेहरे पर मुझे अजब सी मुस्कान दिख रही थी मानो कहना चाहता था कि कितना सुकून मिलता है कफन के साये में..