औना, मौना, कौना
औना, मौना, कौना
"बड़ी भाभी आज आपको बताना ही होगा कि इस बुढ़ापे में आप कैसे इतनी शांति रख पाती हो, कैसे हमेशा खुश रहती हो, बेटे, बेटियों, बहुओं के साथ कैसे सामंजस्य बिठाती हो " छोटी देवरानी सुभद्रा ने बड़ी भाभी का हाथ पकड़ते हुए पूछा।
"देखो सुभद्रा, हम चाहें तो ये सब बहुत आसान है और न चाहें तो बहुत मुश्किल..।"
"पहेलियां मत बुझाओ बड़ी भाभी, सीधे सीधे बताओ ना..." सुभद्रा बड़ी भाभी के बालों में कंघी करते हुए प्रेम से बोली।
"जानना चाहती हो तो सुनो, बहुत पहले एक मोटिवेटर ने बुढ़ापे को सही तरीके जीने का एक सूत्र बताया था। बस मैं उस सूत्र को पकड़कर चल रही हूँ।"
"कैसा सूत्र ...." सुभद्रा ने गोल - गोल आँखें घूमाते हुए पूछा।
"वो सूत्र है औना, मौना, कौना " बड़ी भाभी ने कहा।
" मतलब...।"
"औना - मतलब अपनी आसक्ति को कम करना। घर- बार, कपड़े, रिश्ते सभी से अपनी आसक्ति को धीरे - धीरे कम करना। आपको जरूरत भर मिल रहा हो तो लालसाओं को विराम देना आवश्यक है।
मौना - मतलब थोड़ा मौन रहना। बेमतलब की सलाह, हर समय दूसरों की बातों में टांग अड़ाने से बचना चाहिए।
कौना - पूरे घर पर, बच्चों पर, गहनों पर एकाधिकार से बचना और मन को ईश्वर की ओर मोड़ना।"
"यही है मेरा सिद्धांत जिसके सहारे मेरा बुढ़ापा आराम से चल रहा है। मैं स्वयं खुश रहती हूँ और दूसरों की खुशी में बाधक नहीं बनती हूँ।"
"अब तुम चाहो तो यही सिद्धांत अपना कर खुश रह सकती हो।"
"जी बड़ी भाभी, आज से ही प्रेक्टिस चालू " हँसते हुए सुभद्रा ने कहा।
"अब जाती हूँ बड़ी भाभी।"
"याद रखना औना, मौना, कौना " बड़ी भाभी ने हँसते हुए कहा।
"बिल्कुल याद रखूँगी भाभी औना, मौना, कौना...।" खिलखिलाते हुए सुभद्रा ने कहा और जाने के लिए खड़ी हो गई।