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Arunima Thakur

Inspirational

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Arunima Thakur

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अग्रिम भुगतान

अग्रिम भुगतान

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सुप्रिया की दस वर्षीय बेटी खेलते खेलते एक दिन बेहोश होकर गिर पड़ी। थोड़ी देर बाद उसे होश तो आ गया था पर वो थोड़ी ब्लैंक (भावशून्य) थी। अपनी सुध बुध खो चुकी थी। सुप्रिया कुछ समझ नहीं पा रही थी कि ऐसी स्थिति में क्या करें । पड़ोसियों की मदद से पास के डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने बड़े हॉस्पिटल में ले जाने का परामर्श दिया। वह बिना टेस्ट के कुछ कह नहीं सकते थे । शहर में सुप्रिया अकेली थी। पति पोस्टिंग पर थे वह भी...., सास-ससुर गाँव में। बच्चों को पढ़ाने के लिए सुप्रिया यहाँ अकेले रहती थी । सास ससुर को खबर करना मतलब उन्हें खाली फोकट में परेशान करना, वह आ तो पाएंगे नहीं, सुनकर परेशान ही होंगे। 


बड़े हस्पताल में डॉक्टर ने कुछ टेस्ट करने के लिए बोला। अब तक सुप्रिया की बेटी सामान्य हो चुकी थी, बिना किसी दवाई के। तो उसे लगा, होगा, वह बेकार ही परेशान हो गई। वह सोच रही थी कि जाने दो टेस्ट नहीं करवाती हूँ। बेकार पैसे खर्च होंगे । हम मध्यमवर्गीय लोगों के लिए बीमारी पर पैसे खर्च करना भी किसी विलासिता से कम नहीं है। पर ज्यादा भीड़ नहीं थी तो जितनी देर में वह सोच विचार करती, इतनी देर में सारे टेस्ट हो गए। डॉक्टर ने दो दिन बाद आकर रिपोर्ट दिखाने को कहा। इन दो दिनों में उसकी बेटी बेहोश तो नहीं हुई पर एक बार कुछ मिनटों के लिए भावशून्य हो गई थी। सुप्रिया अब बहुत डर गई । पति को फोन भी नहीं लगा सकती थी। यह तनाव उसे अकेले ही झेलना था । शायद उसके जैसी सभी महिलाओं को जिनके पति देश की सुरक्षा का मोर्चा संभालते हैं घर की जिम्मेदारियों का मोर्चा महिलाओं को अकेले ही संभालना पड़ता है । 


भगवान भगवान करके दूसरे दिन रिपोर्ट लेकर वह बेटी के साथ डॉक्टर के पास गयी। भगवान का नाम लेना भी कुछ काम ना आया। डॉक्टर ने बताया उसकी बेटी के दिमाग में कुछ क्लॉट्स है। तुरन्त ऑपरेशन करना पड़ेगा । आप पैसों का इंतजाम कर लीजिए। सुप्रिया तो रोने लग गयी। 


डॉक्टर बोले, "आप परेशान मत होइए। ऑपरेशन के बाद वह बिल्कुल ठीक हो जाएगी"। 


सुप्रिया बोली, "ऑपरेशन से ज्यादा तो मुझे पैसे की चिंता है। मेरे पति सियाचिन बार्डर पर है। मैं अपने पति से फोन पर बात भी नहीं कर पा रही हूँ। दोस्तों रिश्तेदारों से माँगना पड़ेगा। मुझे थोड़ा समय दीजिए। पहले मैं पैसों का इंतजाम कर लूँ। क्या मैं आपरेशन कुछ महीनों बाद करवा सकती हूँ ? तब तक मेरे पति भी आ जाएंगे। शायद वो मिलिट्री हॉस्पिटल में ..."।


 डॉक्टर थोड़ी देर कुछ नहीं बोले। सुप्रिया उठकर बाहर जाने लगी। अचानक से डॉक्टर बोले, "आप बिटिया को एडमिट करवा दीजिए । पैसों की चिंता मत कीजिए। मैं आज यहाँ चैन से पैसे कमा पा रहा हूँ क्योंकि आपके पति सीमा पर कष्ट सहन कर रहे हैं। हर सैनिक का परिवार हमारा परिवार है । वह अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं हम अपनी ड्यूटी निभाएंगे। आपकी बेटी का ऑपरेशन हो जाएगा। उसके पापा ने सारे पैसों का अग्रिम भुगतान अपनी जान के रूप में भारत माँ के चरणों में पहले ही समर्पित कर दिया है। आज सुप्रिया को फिर एक बार सैनिक की पत्नी होने पर गर्व था।


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