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Lata Sharma (सखी)

Romance

4  

Lata Sharma (सखी)

Romance

पहला वाला प्यार

पहला वाला प्यार

14 mins
253


  निधि 40 साल की होने को आई थी। अभी तक शादी नहीं हुई, न कभी किसी से प्यार। यूँ कहिये कि जिंदगी खाने कमाने में इतनी व्यस्त रही कि उसे ये एहसास करने के लिए वक़्त ही न मिला। घर परिवार की जिम्मेदारी भी नहीं थी। मगर परिवार बहुत बड़ा था। 9 बहनों में सबसे छोटी। एक बेटे की चाह ने उसके पिता को 9 बेटियां दे दी थी। और उसके पिता ने इसके बाद भी बेटियों को सही से पाला, आर्थिक स्थिति अच्छी थी मगर 9 बच्चों के हिसाब से ठीक ठाक थी। 

 निधि के पिता को अपनी 8 बेटियों का विवाह करते करते ही ही समय बीत गया। और जब तक निधि की बारी आई वो 40 को पार करने ही वाली थी। अब आये दिन घर में उसकी शादी की बात होती। उससे बड़ी बहन की शादी हुए अब तीन साल बीत चुके थे। 

  निधि की माँ ने जब उससे बात की तो उसने कह दिय्या, उसे नहीं करनी शादी। वो जिस तरह है खुश है। और फिर वो भी चली गई तो मां पापा अकेले रह जाएंगे। इससे पहले उसने कभी शादी के बारे में, जीवन साथी के बारे में सोचा तक न था और अब शादी.. अजब स्थिति में आ गई थी वो। 

 निधि एक प्राइवेट कंपनी में काम करती थी, इतना कमा लेती थी जिससे उसका पेट तो पल ही जाए। खैर! उस दिन सुबह सुबह माँ ने उसका दिमाग खराब कर दिया, शादी शादी कहकर। और ये भी बोली, कि वो ही खुद ढूँढ ले, अगर उसे कोई पसन्द हो तो उन्हें कोई परेशानी नहीं। मगर निधि ने तो कभी सोचा तक नहीं था। उसका तो मानना था कि शादी करने का हक़ भी और जिमेदारी भी माँ पापा की है। वो जब करें। करें तो करें, न करें तो भी वो खुश है। मगर आस-पास के लोग अब उसके मन में ये भावना भरने लगे थे कि शादी कितनी जरूरी है। सुबह सुबह माँ ने ये तक कह दिया कि "कब तक उन पर बोझ बनी रहेगी" निधि का दिल माँ की इस बात से दुख गया। 

 वो बिना खाये पिये घर से गुस्से से निकल आई। और आफिस की बस की जगह रोडवेज की बस में बैठ गई। उसने ध्यान ही न दिया कि वो किधर जा रही है। रोडवेज की बस, शहर से बाहर जा रही थी। आधे घंटे बाद उसे होश सा आया और उसने पूछा, "ये बस किधर जा रही है?

 उसने दो तीन बार पूछा, मगर शोर बस में इतना था कि किसी ने उसकी बात सुनी ही नहीं। उसने ये भी ध्यान न दिया कि उसकी बगल की सीट में उसी की उम्र का एक लड़का बैठा है। उसके चेहरे पर किताब रखी थी, और वो ऐसे ही बोला, "दिल्ली जा रही है बस"। 

 जब निधि ने ध्यान दिया तो पता चला, कि वो गलती से रोडवेज की बस में चढ़ गई है। जो उसके स्टॉप से रोज गुजरती है, उसी वक़्त। रोज तो अपनी बस में बैठती थी आज गुस्से में गलत बस में बैठ गई है। ये जाना तो निधि के होश उड़ गए, उसने शोर मचाना शुरू किया बस रोको। बस रुकी, कंडक्टर से बहस हुई वापस ले जाने के बारे में, और बस उसे आधे रास्ते पर उतार कर चली गई। 

 अब वो परेशान, जंगल का रास्ता। और ऐसे में कोई सवारी नहीं मिली तो क्या होगा? उसने अपने सर पर मारा और खुद से बोली, "क्यों किया इतना गुस्सा? वो भी ये समझते हुए के गुस्सा खुद का ही बुरा करता है, अब भुगत। मगर वो अब क्या करे। उसकी आँखों से आँसूँ गिरने लगे। सुनसान रास्ता। उस पर बस इस आधे घंटे में किस किस राह मुड़ी उसे क्या पता। उसने मोबाइल निकाला, देखा तो मोबाइल डिस्चार्ज। रात को मोबाइल लेकर सो गई थी, और उसके उठते ही माँ का शादी पुराण शुरू हो गया था। तो मोबाइल चार्ज ही न हुआ था। 

  तभी जिस तरफ बस गई थी उसी तरफ से कुछ चेहरे से गुंडे टाइप आदमी आते दिखाई दिए। डर के मारे उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। आज से पहले उसके साथ कभी ऐसा नहीं हुआ था। वो धीरे धीरे वापस लौटने लगी। तभी वो आदमी आये और पूछने लगे, "मैडम, कुछ समस्या है क्या? किधर जाना है आपको, हम पंहुँचा दें।" 

 उनमें से एक उसका पर्स छूने लगा। उसी वक़्त एक हाथ आया और उसका हाथ पकड़कर बोला, "कहीं नहीं जाना हमें। ये मेरे साथ है। हम जंगल में मंगल करने आये हैं आपको कोई दिक्कत है?" 

  उसकी बातें सुनकर वो आदमी लोग चले गए। निधि इतना अधिक डर गई थी कि वो उस आदमी की शर्ट पकड़कर उसके पीछे छुप गई। 

 जब वो आदमी चले गए तो वो आदमी बोला, "मैडम चले गए वो लोग..."

वो सामने आई और बोली, "शुक्रिया।"

 "अब किधर जाएंगी आप? बस वाले ने आपको रास्ते पर उतार दिया।" वो आदमी बोला। 

 वो एकदम से बोली, "आपको कैसे पता ये सब?"

 वो बोला, "शायद आपने मुझे पहचान नहीं, मैं आप ही के बगल में बैठा था। जिसने आपसे कहा था ये बस दिल्ली जा रही है।"

 निधि बोली, "ओह! वो आप थे?" फिर तुनककर बोली, "मैं कैसे पहचानती आपको? आपके चेहरे पर तो किताब थी, और मैं लड़कों को ऐसे नहीं देखा करती।" 

 उसकी ये बात सुनकर वो आदमी जोर जोर से हँसने लगा। वास्तव में, जैसे निधि अपनी उम्र की नहीं लगती थी, ठीक वैसे ही वो भी लड़का ही लग रहा था। निधि ने देखा तो वो लड़का हँसे जा रहा था। 

निधि ने जोर देकर पूछा "इसमें इतना हंसने वाली के बात है?"

 तो वो तपाक से बोला, " रोने वाली भी बात नहीं है.. इसलिए हँसिये, रोने से प्रॉब्लम आसान नहीं होती बल्कि लोग गलत फायदा उठा लेते हैं। आपकी आंखों में आंसूं थे तो आपको कमजोर समझ कर वो लोग आए थे। मैंने देख लिया तो मैं आ गया।"

 निधि बोली, " लेकिन अगर आप मेरे बगल वाली सीट पर बैठे थे तो आप कैसे आ गए? आप तो जा रहे थे उस बस से?"

इस बात पर वो लड़का थोड़ा झेंप गया। तो निधि को बल मिल गया, वो बोली, "बताइये कैसे आये?"

 तो वो बोला, "गलत मुझसे देखा नहीं जाता तो मैंने कंडक्टर और ड्राइवर से बहस की, कि उन लोगों को आपको इस तरह बीचों बीच जंगल में नहीं उतारना था। आप क्या करेंगी? किधर जायेंगी? तो उन्होंने... "इतना कहकर वो रुक गया। 

 निधि एकदम से बोली, " तो उन्होंने आपको भी बस से उतार दिया?" अब हँसने की बारी निधि की थी। मगर फिर भी हँसी रोककर पूछा, "क्या कहा उन्होंने आपसे?"

  वो मासूमियत से बोला, "ड्राइवर ही नहीं कंडक्टर और सारे यात्री बोले, आपको ज्यादा दया आ रही है न तो आप ही उसकी मदद कर दीजिए, और मुझे बस से उतार दिया।"

 ये सुनकर निधि पेट पकड़ पकड़ कर हँसने लगी। न जाने पिछली बार वो कब इस तरह खुलकर हँसी थी। वो और जोर से हँस रही थी। और हंसते हंसते बोली, "हँसिये हँसिये हँसना सेहत के लिए अच्छा होता है।"

 ये सुनकर वो भी हँसने लगा, फिर बोला, "लेकिन अब हम करेंगे क्या? वापस जाने का रास्ता बहुत दूर है.. और पता भी नहीं किस राह जाना है.. ?"

 अब इसकी बात सुनकर निधि रोने लगी, और बोली, "अब क्या होगा हमारा। कोई शेर चीता आकर खा गया तो हड्डी भी न मिलेगी।"

 दोनों को पता था कि इस रास्ते पर सचमुच ये होते हैं। ये सोचकर ही दोनों दुम दबाकर जितना तेज से दौड़ सकते थे दौड़े। तकरीब 5 मिंट तक बेतहाशा दौड़ते रहे। और आखिर तक गये। एक जगह पर निधि बैठते हुए बोली, "न दौड़ा जाता मुझसे, तुमको और दौड़ना है तो दौड़ो। मैं न दौड़ने वाली।"

 वो लड़का भी थक कर उसी के पास खड़ा हो गया, और बोला, "मुझसे भी न दौड़ा जाता। मैं भी न दौड़ने वाला, भले मुझे कोई चीता अपने मुंह का निवाला बना ले।"

 "चीता.. ?" निधि के मुंह से निकला, और फिर से तेज दौड़ने लगी। वो लड़का भी दौड़ा। जितना दम था दौड़े। और 10 मिंट तक दौड़ते ही रहे। आखिर जब शरीर पूरी तरह थक गया तो वो दोनों एक मील के पत्थर पर बैठकर सुस्ताने लगे। मगरे ये क्या वो घना जंगल पार कर आये थे, और सड़क पर कुछ आबादी दिख रही थी। लड़का बोला, "देखो, उधर आबादी है। शायद हमें पता चल जाये हम कहाँ हैं? और कोई सवारी मिल जाये वापस जाने को?" 

 निधि खुश होते हुए बोली, "अरे हाँ! तुम सही कह रहे हो.. और क्या पता कुछ खाने को भी मिल जाये. बहुत भूख लगी है, घर से गुस्से में कुछ खाकर ही न आई। बहुत जोर से लगी है भूख.." 

 सड़क पार सचमुच में एक गाँव था। दोनों उसी गांव की ओर बढ़ चले। और बातें करते चलें। लड़का बोला, "पता है गुस्सा बहुत बुरा होता है, ये हमारा ही बुरा करता है, अगर तुम गुस्सा नहीं करती तो शायद भूखी न निकलती, गलत बस में न चड़ती, कंडक्टर से बहस भी न करती और वो आधे रास्ते पर तुमको नहीं छोड़ता।"

 निधि ने उसकी बात सुनी तो बोली, "सही कहा! बिल्कुल सही कहा, और तुम गुस्सा नहीं करते तो मेरे साथ सड़क न नाप रहे होते।" इतना कहकर वो फिर से हँसी। 

  उसकी बात सुनकर लड़के को भी हँसी आ गई। उनको गांव तक पहुचने में 20 मिंट लगे और तभी एक दुकान दिखी, वहां खाने को कुछ चिप्स बच्चों वाले मिल रहे थे। दोनों वही खाने लगे। निधि को प्यास लगी तो निधि ने उस लड़के का ही पानी पी लिया। लड़के ने रोका तो दोनों की निगाह पहली बार मिली, और और दोनों के बीच चुप्पी छा गई। निधि ने उसकी बोतल नीचे रखी और घूमकर अपने सर पर हाथ रखा। और हँस पड़ी। उसे हंसता देखकर लड़का भी दूसरी तरफ देखकर चुपके चुपके मुस्कुराने लगा। 

 पिछले 30 मिंट से ज्यादा समय से दोनों साथ थे और एक दूजे का नाम तक नहीं जानते थे। लड़के ने जल्दी से अपना फिनिश किया और दुकानदार से पूछा, "ये कौन सी जगह है?"

वो बोला, "प्रेम नगर।"

 ये सुनकर दोनों को फिर से हँसी आ गई। हंसते हंसते लड़का बोला, "जी हम जगह का नाम पूछ रहे हैं।"

 वो बोला, "मैं जगह का ही नाम बता रहा हूँ। ये प्रेम नगर है। इसे इसी नाम से जाना जाता है, और आप जैसे भटके हुए प्रेमियों को शरण भी यही मिल सकती है, और सही रास्ता भी बता सकते हैं। अंदर गांव के अंदर जाइये, और जमींदार साहब को पूछिये, उनके घर जाइये, आपको मदद जरूर मिलेगी।" 

 दोनों शुक्रिया कहकर गांव के अंदर गए और जमींदार साहब को खोज लिया, उनको सारी बात बताई। तो आस पास जितने लोग खड़े थे सब ठहाका मारकर उनपे हँसने लगे। दोनों को बड़ा अजीब लगा। ये बात पूरे गांव में फैल गई थी। सब गांव वाले उनके चारों तरफ इकठ्ठा हो गए थे। और सभी उन दोनों की बातें सुनकर जोर जोर से हँस रहे थे। उन लोगोंको इस तरह हंसता देखकर निधि शर्म से आधी हो गई। वो जल्दी से लड़के के पीछे छुप गई। और लड़का उसे छुपाने लगा। तभी जमींदार ने पूछा, "के नाम है तुम दोनों का?"

 अब निधि और उस लड़के को याद आया कि वो एक दूसरे का नाम ही नहीं जानते। निधि जल्दी से बोली, "मेरा नाम है निधि है.." निधि का नाम सुनकर, लड़के ने निधि की तरफ देखा। और उसका नाम बुदबुदाया। निधि उसके मुंह से अपना नाम सुनकर न जाने क्यों शरमाई।

लड़का भी बोला, "मेरा नाम निखिल है।"

निधि भी पहली बार लड़के का नाम सुनकर उसका नाम बुडबड़ाई और निखिल उसे देखकर मुस्कुरा दिया। जमींदार ने दोनों को अच्छे से खिलाया पिलाया, और थोड़ी देर आराम करने को बोला। और बोले तब तक उन दोनों के शहर पहुंचने का इंतजाम करते हैं। थोड़ी देर दोनो एक ही कमरे में एक दो अलग अलग खाट पर बैठे थे। अचानक से दोनों के बीच चुप्पी आ गई थी। दोनों ही कुछ न बोल रहे थे या कहूँ बोल न पा रहे। अचानक ही कुछ आ गया था दोनों के बीच। चुपके चुपके एक दूजे को देख भी रहे थे और नजर फिरा भी रहे थे। एक दूजे की फिक्र भी थी और बेपरवाही भी दिखा रहे थे। 

 थोड़ी देर की चुप्पी के बाद निखिल ने पहली बार निधि का नाम लेकर पुकारा उसे। वो बोला, "निधि! इतना दौड़ने और चलने के बाद थक गई होगी। थोड़ी देर आराम कर लो। घर तक तो शाम तक ही पहुँचोगी, क्या पता ये लोग क्या और कैसे इंतजाम करेंगे?"

 निखिल के मुंह से पहली बार अपना नाम सुनकर उसके अंदर एक सिरहन सी दौड़ गई। मगर उसे सम्भालते हुए वो धीमे से बोली, "मैं अगर लेट गई तो नींद आ जायेगी। और मैं सोना नहीं चाहती।" इतना कहकर कुछ देर शांत रही। फिर बोली, "निखिल जी, नाम लेते हुए जैसे उसके लब थरथरये हों, यूँ वो थोड़ी देर रुकी और फिर बोली, "निखिल जी, आप भी तो थक गए हैं। मेरी वजह से इतनी परेशानी उठानी पड़ गई आपको, आप कर लीजिए आराम।"

 अपना नाम सुनकर, निखिल को भी निधि के जैसा ही कुछ महसूस हुआ। वो निधि को देखकर मुस्कुराया और उसे देखते देखते ही लेटने लगा। लकड़ी की चारपाई बेंत वाली, बिना देखे लेटा तो तड़ाक से सर टकराया और उसके मुंह से उईई निकल गई। निधि जल्दी से उठी और उसके सर को पकडा, और उसका सर दबाते हुए बोली, " ज्यादा जोर से तो नहीं लगी।" न जाने किधर से मगर निखिल का दर्द उसकी आँखों में आ गया। नजर फिर मिली। निधि के आँसूँ उसने देख लिये उसे हंसाने के लिए वो बोला, "लगता है आज के दिन चोट लगना भी लिखा है" और मुस्कुरा दिया। उसकी ये बात सुनकर निधि को होश आया। उसने जल्दी से सकपकाकर अपना हाथ निखिल के हाथ और सर के बीच से हटाया और अपनी खाट पर बैठने लगी कि ठोकर लग गई। अबकी उसके मुंह से निकला, "उईई माँ।"

  निखिल जल्दी से आई उसने उसका पैर उठाया, और बोला, "ज्यादा जोर से तो न लगी।" उसकी आँखों में भी वही फिक्र थी जो थोड़ी देर पहले उसकी आँखों में थी। पहले तो उसे बहुत अच्छा लगा, फिर वो बोली, "लगता है आज चोट खाना भी लिखा है.. " इतना कहकर हँस पड़ी। और जमीन पर अब तक बैठ चुका निखिल भी हँस पड़ा। नजर फिर मिली और इस बार एक आवाज ने नजर की एकाग्रता तोड़ी। आवाज आ रही जमींदार साहब की। "अरे ओ छोरा-छोरी इंताजम हुई गयो चलो इब जाओ अपन घर।"

 दोनों ने सुना तो दोनों बाहर को आये देखा तो जीप खड़ी थी। उन दोनों को देखते ही जमींदार बोला," ई महारी जीप तन्ने बस स्टेशन छोड़ देगी। वहां से शहर को बस निकलेगी, 3 बजे वो तुम दोनों को तुम्हारे स्टेशन 6 बजे पंहुँचा देगी। इब जल्दी करो। दोनों ने घड़ी देखी 3 बजने में अभी आधा घण्टा था। दोनों ने सबका शुक्रिया कहा और जीप में बैठ गए। जीप ने उन्हें बस अड्डे पर छोड़ा और वहां से आसानी से बस मिल गई। और जीप में ही उन्हें पता चला, कि वो दोनों शहर से सिर्फ आधे घण्टे की दूरी पर उतारे गए थे, लेकिन दोनों ने डर के मारे उल्टी दौड़ लगा दी थी। और गलत रास्ते से वो दोनों और दूर स्थित इस गांव पहुंचे थे। इसलिए अब वो अपने शहर से 3 घण्टे की दूरी पर हैं। दोनों को ये सब जीप वाले ने बताया। जब पता चला तो दोनों सकपका गए थे। लेकिन वो जब बस में बैठे और निखिल टिकट लेकर उसके पास बैठा तो सोच सोचकर हँसने लगा, और निखिल को देखकर निधि को भी हँसी आ गई। बस चल पड़ी थीं। दोनों गुपचुप हँस रह थे। हंसते हंसते निधि ने कब सर निखिल के कंधे पर रखा पता न चला, और जब पता चला तो हँसी तो रूक गई मगर आँखो में पहली बार पहले प्यार की कशिश उभर आई। गाड़ी ने एक झटका लिया तो दोनों की नजरें हटी, दोनों सम्भले। काफी देर चुपी छाई रही। और फिर निधि ने पूछा, "आपको तो दिल्ली जाना था न, फिर आप वापस शहर क्यों जा रहे हैं?"

 निखिल ने बिना निधि को देखे कहा, "तुम्हारे लिए उस कंडक्टर से लड़ गया। पूरा वक़्त तुम्हारे साथ रहा और अब जब तुम सही सलामत पहुंचने वाली हो तो मुझे ये सैटिस्फैक्शन चाहिए कि तुम सही सलामत अपने घर पहुंच जाओ। दिल्ली तो कल भी चला जाऊँगा। मगर तुम्हारे साथ के ये कुछ पल शायद फिर न पाऊँ..." इतना कहकर उसने निधि को देखा। 

 निधि ने भी उसे देखा, उसकी आंख भर गई। निधि जल्दी से खिड़की की तरफ देखने लगी। और देखते देखते ही बोली, "क्यों न देख पाएंगे, दिल्ली जाकर कौन सा आप दिल्ली ही बस जाएंगे और कौन सा मैं आपसे फिर न मिलना चाहूँगी?" इतना कहकर उसने उसकी तरफ देखा। दोनों की नजर में इस बार पहला प्यार उभर आया था। दोनों एक दूजे को देख ही रहे थे कि एक आदमी आया और निखिल के बगल वाली सीट पर बैठ गया। दोनों का ध्यान टूटा। और फिर पूरे रास्ते खामोशी छाई रही। 

 बस स्टेशन पर पहुंचने पर निखिल ने कहा, "तुम यहाँ रुको। मैं टैम्पो बुला लाता हूँ। तुम उससे घर चली जाना। थक भी गई हो।" कहकर जाने लगा, तो निधि ने उसका हाथ पकड़ रोका और बोली, "और तुम क्या करोगे?" 

  निखिल ने उसकी तरफ देखा, उसके हाथ पर अपना हाथ रखा और बोला, "निधि मैं घर जाऊँगा, और कल सुबह फिर से दिल्ली के लिए निकलूंगा। किस्मत ने चाहा तो मुलाकात होती रहेगी।" और चला गया बस दो मिनट में टैम्पो मिल गया, निधि टैम्पो पर बैठी, टैम्पो स्टार्ट होने लगा तो निधि को लगा कि कुछ छूट रहा है। उसकी आंख इस दर्द से भर गई। वो जल्दी से उतरी और जाकर निखिल के सीने से लग गई। जैसे निखिल इसी का इन्जार कर रहा था। उसने बाहें फैला दी। और कुछ पल को दोनों एक दूजे के सीने से लगे रहे। फिर निधि झटके से हटी और बोली, "तुझे भी प्यार हो गया रे निधि, पहला पहला वाला प्यार".. मुस्कुराकर निखिल को देखा और टैम्पो में बैठ चली गई। निखिल चिल्लाता रह गया, मुझे भी हो गया निधि! पहला वाला प्यार तुमसे.. " निधि मुस्कुराती रही। पहला प्यार हो चुका था। मगर तब याद आया कि बात कैसे होगी? उसने तो उसका नम्बर लिया भी नहीं और अपना दिया भी नहीं। उसने टैम्पो वापस लौटाया मगर निखिल जा चुका था..  



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