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Vikas Sharma

Children Inspirational

1.0  

Vikas Sharma

Children Inspirational

रचनात्मकता

रचनात्मकता

5 mins
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नन्ही चिड़िया के नन्हें - नन्हें बच्चे पंखों को फड़फड़ाते, चीं - चीं करते, इधर - उधर फुदकते - विहान के लिए इससे अच्छा मन को लुभाना वाला कोई खेल नहीं हो सकता था। विहान को चिड़ियों के बच्चों के साथ चहकते देखकर सरला भाव - विभोर हो उठती। विहान तीन साल का ही था अभी, असमय पापा की मृत्यु से उसके आसमान के छोर बिखर गए थे, पिता शब्द को अभी समझ भी नहीं पाया था आने वाले समय की आहट से बेखबर था, सरला को ही इसके मायने से रूबरू कराना था।

विहान को मुसकाए काफी दिन हो गए थे, सरला जितने अच्छे डॉक्टर को दिखा सकती, दिखा चुकी थी, सारे खेल कर चुकी थी, गीत गा चुकी थी, भभूत भी लगा के देख चुकी थी ....पर आज उसके कानों में बड़े दिनों के बाद ये किलोल की आवाज आई थी, सरला को सुकूँ मिला, उसकी हंसी भी विहान की मुस्कान के साथ एक हो गई थी। विहान को खेलने के लिए दोस्त मिल गए थे। विहान भी सारा दिन फुदकता रहता चिड़िया के बच्चों की तरह।

घर में बिखरे तिनके, चिड़ियों की बीट, टूटे पंख सरला को परेशान कर देते, पर विहान की हंसी देखकर सारी परेशानी काफूर हो जाती। चिड़ियों को घर से बाहर निकालने को सोचा तो कई बार था पर कभी कुछ - कभी कुछ में ऐसा हो नहीं पाया और अब इस विचार की इमारत कमजोर हो गई थी क्योंकि उस पर विहान की मुस्कराहट की मचान जो बन गई थी।

विहान अब स्कूल जाने लगा था, समय पर लगा कर उड़ रहा था। नए दोस्त, नए माहौल में विहान को गढ़ रहे थे। चिड़ियों की ओर अब उसका ध्यान कम ही जाता था, कभी चिड़िया ही उससे मिलने आ जाती या शोर मचाकर उसका ध्यान खींचना चाहती, इसको विहान खुद की निजता में दखल समझने लगा, विहान का एक जुड़ाव उन पक्षियों के साथ था जिसे वो समझा ही नहीं था। सरला भी विहान के नाश्ते, खाने के साथ - साथ अनायास ही पक्षियों को भी दाना - पानी दे देती। जब कभी विहान कोई गलती करता और सरला उसे डांट लगाती, अजीब इतेफाक था, चिड़िया पूरे परिवार समेत कुछ न कुछ ऊधम मचा ही देती और मामला कहाँ से कहाँ पहुँच जाता। गुस्सा और उफनता तो पर अब उसको सहना चिड़ियों को पढ़ता, कभी - कभी तो उनकी जान पर बन जाती, सरला के जो हाथ में आता, फेंककर मार देती थी, पर विहान और विहान की दोस्त चिड़िया एक - दूजे के रक्षक बन ही जाते। माँ - बेटे में कहा सुनी हो जाती चिड़ियों को घर से निकालने को लेकर पर कोई फैसला नहीं निकल पाता था, कभी माँ की अकड़ कम हो जाती कभी बेटा ही जिद छोड़ देता।

विहान स्कूल की दुनिया में रमता जा रहा था, स्कूल की दुनिया - हाँ जो विहान को नए आयाम दे रही थी, अच्छा बोलना, एक - दूसरे की मदद करना, निर्देशों को झट समझकर पूरा का देना, विनम्रता से सरोबार रहना ऐसी ही और दस - बीस हिदायतें दी गईं थी, पुस्तकों के साथ ये सब मिलकर उन्हें कोई मुकाम दिलाते थे, उसी की कोशिश में सारे शिक्षक लगे रहते और बच्चे भी उसे ढूंढ पाते या नहीं, ऐसी दुनिया खोज पाते या नहीं पर दिखाना तो ये ही था - उनको एक दौड़ में भी तो शामिल कर दिया था इसी स्कूली दुनिया ने, अब दौड़ शुरू हो गई थी बीच में रुकना इस दुनिया की बात नहीं थी। विहान की कक्षा को पक्षी मेले की तैयारी करनी थी, सभी बच्चों को रोचक टास्क मिल गए थे, ये प्रदर्शनी भी उनकी दुनिया में खास जरूरी थी।

विहान को इस अवसर पर कुछ अच्छा सूझ ही नहीं रहा था, नए – नए चित्र बनाता, रंग भरता, अपनी माँ को दिखाता, किस बच्चे की माँ को अपना बच्चा और उसका काम पसंद नहीं आता, सरला भी इसी दुनिया की थी, तारीफ करते – करते थक गई पर विहान को कुछ कमी हमेशा महसूस होती। उसे संपूर्णता की बाकी बच्चों से अच्छा करने की परिभाषा बताई गई थी, तमाम अच्छे प्रयासों के बावजूद उसे संतोष नहीं मिल रहा था। अगले दिन कक्षा के बच्चे अपने - अपने मॉडल दिखा रहे थे, शिक्षक ने ऊपरी तौर पर तो प्रशंसा की थी पर उन्हें भी मेले के दिन किसी तारीफ मिलने का दमखम वाली कला नजर नहीं आई थी, विहान को आज चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था, दो दिन बाद मेला था। विहान को अब बाकी के पत्ते तो दिख गए थे उसे बस अपनी चाल चलनी थी, पर कला, मॉडल में तो बाकी साथी विशेष कर ही चुके थे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था।

मेले वाले दिन और स्कूल के बच्चे भी प्रतिभाग करने के लिए आए हुए थे, सभी में होड़ थी एक - दूसरे से, प्रशंसा तो जारी थी एक - दूसरे की पर एक अजनबी जलन के साथ, जो चाहे - अनचाहे इस स्कूली दुनिया में उनमें समा गई थी। सभी को प्रतीक्षा थी अब परिणाम की, सबसे बेहतर चित्र, मॉडल किसका है - ये जानने की, आल द बेस्ट एक दूसरे को दे रहे थे पर मन में अपने ही जीतने की प्रार्थना भी। जैसा सभी को ये तो पता ही चल चुका था की प्रथम किसको आना है, उन्हें तो इंतज़ार था दूसरे व तीसरे क्रम का। वास्तव में विहान की कृति सब में अनोखी बन पड़ी थी। चारों तरफ आकाश, रंग आदि की कला तो बाकी जैसे ही थी पर जो उसे अलग कर रही थी वो थी असली चिड़िया के पंख लगे पक्षी। किसी को इससे सरोकार नहीं था की वो कहाँ से आए पर सभी विहान के रचनात्मक दिमाग की तूती बखान रहे थे।


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