Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Monu Bhagat

Crime Drama Tragedy

2.5  

Monu Bhagat

Crime Drama Tragedy

सासू माँ

सासू माँ

6 mins
5.9K


तीन हफ्ते से भी ज्यादा बीत चूके थे। बेटी ने जो कहा था की मै गाड़ी भेज दूंगी तुम आ जाना, वो

गाड़ी अभी तक आई नहीं थी। तभी तो जब भी घर में किसी का फोन रिंग करता था, तो वह बूढ़ी औरत चौंक जाती थी कि क्या पता शायद बेटी का ही फोन हो, और बोल रही हो कि "माँ" गाड़ी आज जाएगी आपको लेने के लिए, पर ऐसा कभी होता नहीं था। और फिर वो उसी उम्मीद में लेटी रहती थी एक पुरानी सी चौकी पर जो उस बूढ़ी को लाचार होने का एहसास अपनी मच मच के आवाज से करवाती रहती थी।

 ऐसा नहीं था कि सिर्फ वह एक चौकी ही थी जो उसके लाचार होने का एहसास हर पल करवाती थी। और भी एक मकड़ी का जाल से भरा हुआ रोशनदान था जिस से मानो रोशनी आना तो चाहती ही नहीं थी पर फिर भी वह शायद बुढ़िया को दीवाल पर उसके उजड़े हुए रूप का साया दिखाने आती थी।

कभी कभी तो ऐसा लगता था कि वह जाल भी हवा के झोंकों से नहीं बलकि उस के लाचारी पर हँसने के लिए लहराती रहती थी पर यह सब कुछ खास थोड़ी ना था। यह तो होता ही है।

घर पुराना, चौकी पुरानी, और वह झुर्रियों से भरी औरत भी तो पुरानी ही थी ना।

वैसे तो उसको फ्रिज का ठंडा पानी पीने का कोई आदत नहीं थी पर आज बहू ने वह पानी देने से भी यह कह कर मना कर दिया कि बैठे-बैठे पूरे दिन सिर्फ फ्रिज का ठंडा पानी पीती रहती है और मैं या मेरे बच्चे क्या उसके नौकर है जो बिस्तर पर खाना-पानी बार-बार जा कर दे खुद तो महारानी की तरह लेटी रहती है।

यह बात भी कुछ सही ही बोल रही थी वो।

पूरे दिन तो वह एक ही रोशनदान से आधी आधी अधूरी रोशनी को एकटक होकर देखती रहती थी। पता नहीं किस मिट्टी की बनी हुई थी कि 1 साल से वहीं उसी चौकी पर वैसी ही लेटी हुई थी।

अब उसमें उसकी बहू बेटी भी क्या कर सकते थे। अगर पूरी पीठ उसकी सड़ गई थी तो यह तो बहुत साधारण सी बात थी।

1 साल से बस एक ही बिस्तर पर लेटी है तो ऐसा तो होना ही था। ऐसा नहीं था कि उसकी बहू जानबूझकर उसके कमरे में नहीं जाती थी। वह जाती भी तो कैसे, उस कमरे से इतनी बदबू जो आती रहती थी।

और बदबू आती भी क्यों नहीं, लगता नहीं है की कभी वह एक टेढ़ी वाली थाली और चिपका हुआ लोटा उसके खाने के बाद कभी धुला भी होगा।

वह खुद भी कम थोड़ी ना थी। कुछ ज्यादा ही शोक पाली थी। क्या जरूरत थी कि सफेद साड़ी से ही अपने सिकुड़े हुए शरीर को ढके, अगर कोई और रंग होता तो कम से कम वह इतना गंदा तो नहीं होता ना, खून का

धब्बा हर जगह तो नहीं दिखता ना जो उसके पैर से मच्छर के काटने से निकलता रहता था। इतनी पुरानी

सोच के लोगों की हालत यही तो होती है।

वरना आज तो पति के मरने के अगले दिन ही मुहल्ला में कानाफूसी शुरू हो जाती है कि देखो अभी बीते बीते महीना भी नहीं हुआ उसके पति के मरे हुए और वह कितना सिंगार करके होटल जाने लगी।

और एक ये थी जो 34 साल से पति के जाने के बाद भी वैसी की वैसी ही है। ऐसा थोड़ी ना था कि बेटा समझता नहीं था कि सब ठीक नहीं है माँ के साथ, पर वह बेचारा करता भी क्या ?

बहू तो जाती भी थी उस कमरे में जाती थी, भले वह कारण और मंशा कुछ भी रहता हो पर बेटा जाता भी तो क्यूँ और कैसे आखिर बीवी के जैसे थोड़ी ना था जो कि कमरे में जाकर माँ को गाली देता।

वह तो बेटा था, ऐसा कैसे कर सकता था।

पर फिर भी आज सारी मोह माया छोड़कर जा रहा था उस कमरे में, उस औरत से मिलने जिसने उसको 9 महीना अपने कोख में रखा था। पर रखती भी क्यों नहीं वह तो हर मां का काम होता है। बच्चों को कोख में रखने का अगर किसी ने कोई बड़ा महत्वपूर्ण और एहसान किया है तो वह तो बेटा और बहू है जो कर्तव्य नहीं होने के बाद भी अपनी माँ को 1 साल से बिस्तर पर फ्री में  बैठा कर खिला रहा था।

खैर ऐसा लगता है कि उसकी माँ को शायद कोई काला जादू भी आता था इसीलिए अभी तक कमरे में शरीर पूरी तरह से दाखिल भी नहीं हुआ था और उसकी माँ अपनी सरिया (लोहे की छड़) घुसे हुए पैर को कपड़े से ढकने लगी ताकि कहीं बेटा उसके पैर पर भिनभिनाती मक्खी की आवाज सुनकर वापस ना हो जाए।

अपने बालों को न जाने क्यों सँवारने लगी, अचानक से आज रोशनदान पर लगा हुआ जाल भी रुक गया और रोशनी भी तेजी से अंदर आने लगी मानो सब आज खुश हो रहे हो कि कोई तो जो यहाँ इस चूते (ऐसा कमरा जिसमें बारिश के समय पानी गिरता हो, जिसका छत ख़राब हो ) कमरे में आ रहा है।

चेहराे पर आज झुरियां भी कुछ कम लगने लगी थी। चारों दिशाएँ मानो आज उस सुकड़ी बुढ़िया के साथ खड़े होने को मचल रही थी।

तभी तेज आवाज आई कि माँ जगी हो कि सो रही हो ?

लम्बे कदम से यूँ आया जैसे मानो बहुत जल्दी में हो। उस लंबे कदम और ऐठी आवाज के बीच एक और आवाज सुनाई दी कि बाबू, सोना बेटा, राजा कब आया दुकान से, खाना खाया कि नहीं।

यह आवाज खत्म होती कि उससे पहले एक और तीखी आवाज ने उस कमरे से दस्तक दिया- जल्दी आओ खाना ठंडा हो रहा है, वहीं चिपक गए हो क्या, अरे सुन भी रहे हो कि माँ ने कान में रुई डाल दी है।

खैर ये तो साधारण सी बात थी। वैसे तो झुर्रियों ने उसके आँख को पूरी तरह से ढक दिया था। फिर भी जब

आँख को उठा कर देख बेटे की तरफ तो चेहरा पर न जाने क्यों कुछ माँगने वाला भाव दिख रहा था।

पर यह तो गलत था।

क्या था उस बुढ़िया के पास जो उसका बेटा माँगने आया था। "माँ " यह शब्द एक बार फिर सुनाई दिया-

तुम्हारी बहू के बहन के बेटा का बर्थडे है और सब को बुलाया है अब मैं घर में कोई कलह नहीं चाहता इसीलिए जाने से तुम्हारी बहू और बच्चे को नहीं मना कर रहा हूँ। यह सुनने के बाद वह बुढ़िया अपनी ठूठरी हुई जीभ को अपने दाँतों के बीच से निकाल ही रही थी  कुछ बोलने को तब ही एक और आवाज आई-

तुम्हारे पेंशन वाले अकाउंट में तो हर महीना 500 रुपऐ आते हैं न। सोच रहा हूँ उसमें से ही ₹3000 निकाल कर यह काम कर लूँ।

वैसे भी उसकी माँ कुछ बोल नहीं पाती फिर भी सावधानी बरतते हुए बेटा जवाब को नजरअंदाज करने की पूरी कोशिश के साथ बिना कुछ जवाब सुने माँ का हाथ बहुत आराम से पकड़कर अंगूठा का निशान लगा लिया बैंक के कागज पर और फिर जोर से बोल कर कि अरे यार आ रहा हूँ तुम खाना निकालो और फिर लंबे कदम से निकल गया।

माँ अभी भी बस चुपचाप लेटी हुई थी वैसे ही जैसे एक साल से थी।

खैर ये तो बहुत साधारण सी बात है। बाहर जाते ही बीवी से बोला अरे यार कभी-कभी उस कमरे में झाड़ू भी मरवा दिया करो, कितना गंदा, बदबू आ रही थी, साँस रोककर बैठा हुआ था उस कमरे में।

अच्छा थोड़ा साबुन दो हाथ धोना है, फिर कुछ खाने का मन भी करेगा। बुढ़िया के हाथ के नाखून में कितना गंदा भरा हुआ था, उल्टी जैसा लग रहा है और बीवी ने बहुत जोर से बोला- ये बात सब मत बोलो, मेरे बच्चे खाना खा रहे हैं।।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Crime