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सपनों का आसमान

सपनों का आसमान

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"अरे चलना नहीं क्या आपको।"

झिंझोड़ते हुए सविता ने अपने पति को जगाया। 

हड़बड़ा कर उठते हुए अन्ना ने पूछा- 

"अरे इतनी सवेरे - सवेरे कहाँ चलना है सविता।"

"लो ..... ये भी भूल गए, अरे रात को ही तो बताया था, दीपू की प्रेस का शुभारंभ हैं और हम दोनों को ही पूजा में बैठना है, कितना बोल के गया था वो।"

"दादा आई जल्दी आना पूजा आपको ही करना है फीता भी आपको ही काटना है।"

एक ही पल में अन्ना को याद आया एक दुबला पतला छोटा सा बच्चा फुटपाथ पे रोते हुए मदद की गुहार लगा रहा था, लेकिन कोई भी उसकी सुन नहीं रहा था। कड़ाके की ठंड ऊपर से बेमौसम की बारिश में ठिठुरता कांपता वो बच्चा.....

काम से लौटते हुए अन्ना को फुटपाथ पे मिल गया था। उसे देख कर अन्ना को रहा नहीं गया और अपने घर ले आये। पूछताछ करने पर पता चला, पिता के मरने के बाद माँ के साथ शहर आ गया। माँ भीख मांग कर गुजारा करती थी लेकिन हमेशा कहा करती थी। मेरे दीपू तू कभी भीख मत मांगना, कुछ काम सीखना तुमको बड़ा आदमी बनना है समझा।

और एक दिन जाने क्या हुआ माँ भी सोई तो फिर उठी नहीं .... दीपू भीख मांगना नहीं चाहता था। बार बार माँ की आवाज़ उसके कानों में गूंजती-

"तू बड़ा आदमी बनना कभी भीख नहीं मांगना दीपू।"

अन्ना एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करते थे, दीपू ने उनसे विनती की मुझे भी अपने साथ काम पर ले चलो। प्रेस में दीपू ने शुरू में चाय लाना, साफ सफाई करना, फिर धीरे धीरे छपे हुए कागज समेट कर एक जगह रखना ये काम करने लगा। कुशाग्र बुद्धि का दीपू कुछ ही साल में मशीन चलाने, प्लेट बनाने के साथ छपाई के पूरे "प्रोसेस" में माहिर हो गया। सबसे छोटा होने के कारण पूरी प्रेस में सबका चहेता बन गया। 

आज वही बीस साल का ये लड़का दीपू न अपनी खुद की प्रेस खोल रहा है बल्कि अपने जैसे अनाथ और गरीब लड़कों की मदद कर रहा है उनको रोजगार देकर।

अन्ना की तंत्रा टूटी और बरबस उनके मुंह से निकल पड़ा- 

"देखो सविता इन फुटपाथों पे न जाने कितने दीपू हैं जो अपनी मेहनत और लगन से आसमान पे इबारत लिखने को आतुर हैं लेकिन अफसोस, इनके अरमान भीख के कटोरे में गुम हो जाते हैं ... काश इन्हें कोई सहारा देने वाला हो ....।"

अन्ना और सविता जल्दी से तैयार हो कर दीपू की प्रेस के लिए निकल पड़े। तालियों की करतल ध्वनि के साथ फीता काट कर जब प्रेस का शुभारम्भ किया तो दीपू का चेहरा खिल उठा।

और जब उसने अन्ना और सविता के चरण स्पर्श किये तो दोनों ने गले लगा कर आशीर्वाद दिया। 

आज दीपू बहुत खुश था, उसकी मेहनत जो सफल हो गई। आज उसने अपनी माँ का सपना आसमान में लिख दिया था। अपनी दिवंगत माँ के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे .....

"दीपू तू कभी भीख मत मांगना।" 


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