सपने
सपने
दोपहर के बाद दफ्तर में मन नहीं लगता
और वो अपनी कुर्सी में बैठे बैठे
पहुंच जाता है चाय पीने
अपने उसी कैफे में
जो कभी ख़्वाब था,
और अब महज़ ख़याल बन कर रह गया है।
कैफे जिसमें तरह तरह की किताबें रखी हैं,
जहां किस्से चल रहे हैं हर मेज पर ।
मगर तभी इधर मेज पर रखे लैपटॉप में
स्क्रीन सेवर चलने लगता है।
उसमें इधर से उधर घूमती तारीख को देख
उसके दिमाग में किश्तें घूमती हैं और
वो जल्दी से फ़िर से काम में लग जाता है।
जी, बिल्कुल बेमन।
क्यूंकि जल्दबाज़ी में
मन को भूल आया
चाय की प्याली के पास
अपने उसी कैफे में।