Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

स्पर्श के एहसास

स्पर्श के एहसास

4 mins
7.8K


सर्दियों के महीने में दोपहर की मीठी धूप में खाना खाने के लिए मैं हर रोज पार्क में जाया करता था। एक दिन एक बुजुर्ग आकर मेरे पास ही बेंच पर बैठ गए और अपनी किताब से कुछ पढ़ने लगे। उम्र होगी उनकी ७५ साल के आसपास। उनके पास एक छोटा-सा स्पाइरल पैड और एक बढ़िया-सा बॉल पेन भी था। मैं देखता था, पढ़ते-पढ़ते अचानक वह किताब बंद करते और अपने नोटपैड पर कुछ लिखते।

मैं सोचने लगा इनसे पूछूँ, आप क्या पढ़ रहे हो। पर अनजाने में पूछना शायद ठीक नहीं लग रहा था। जैसे ही मेरा खाना खत्म हुआ, वो बोले, "बेटा यहीं रहते हो क्या?"

मैंने कहा, "नहीं अंकल जी, मैं तो यहाँ इंफॉर्मेशन सेक्टर की कंपनी में काम करता हूँ, बेसिकली इंजीनियर हूँ, पर खाना खाने के लिए मैं रोज यहीं आता हूँ। पहले भी देखा है आप को यहाँ। आप क्या यहीं रहते हैं। आप क्या करते हैं अंकल ?"

"अब कुछ नहीं करता हूँ। अब कुछ कमाता भी नहीं हूँ। मैं अब जीता हूँ और सोचता हूँ अपने बचपन के दिन। फिर वो लड़कपन, जवानी और उसकी रंगीनियाँ। हाँ, कभी-कभी याद आता है वह सब, जो की थी मैंने शैतानियाँ। मजाक भी बहुत उड़ाता था, मैं। मैंने कभी सोचा नहीं था की आने वाला कल ऐसा भी होगा !"

"अंकल क्या बात है, आप बहुत परेशान लग रहे हैं ?"

"नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, मैं रोज यहाँ आता हूँ और जो शब्द मैंने नर्सरी से लेकर कॉलेज तक सीखे, उन सबको समेटने की कोशिश करता हूँ। जो भी शब्द बनाता हूँ ना मैं, तुम्हें इसलिए बता रहा हूँ कि तुम पढ़े-लिखे हो, इंजीनियर हो, शायद मेरी बात समझ जाओ। मेरे बेटे की तरह हो।"

"ओके अंकल लंच टाइम खतम हो रहा है फिर मिलते हैं।"

मैंने अपना लंच बॉक्स उठाया और बोझिल कदमों से वहाँ से चल दिया, सोचते-सोचते जिंदगी भी किस मुकाम पर पहुँचा देती है इंसान को।

अगले दिन मैं जब वापस उसी जगह आया तो देखा अंकल जी बिना किसी किताब पेन या पैड के बैठे हुए थे।

मैंने कहा, "अंकल जी नमस्ते, कैसे हैं ?"

अंकल बोले, "अच्छा हूँ बेटा, बैठो।"

अंकल जी बोले, "खाना नहीं खाओगे !"

पता नहीं क्यों खाना खाने का मन नहीं हुआ। सोचा थोड़ा टाइम अंकल जी को दिया जाए और इनके मन की उलझनें समझने की कोशिश की जाए, शायद कुछ बोलकर इनका मन हल्का हो सके, इतने में मैंने कहा, "थोड़ी देर पहले ऑफिस में कुछ खा लिया था, बस आप से मिलने चला आया हूँ। सोचा आप से कुछ सीखने को मिलेगा।"

अंकल जी बड़ी संजीदगी से मुस्कराए और मुझे लगा वो शायद इसी इंतज़ार में थे की मैं उनकी बातें सुनने को राज़ी हो जाऊँ, बस फिर क्या था अंकल बोले, "क्या बताऊँ, जब मैं जब नन्हा-सा था, मम्मी-पापा की बातें सुन हँसता और उनके शब्द याद रखता था। फिर स्कूल में एक से पांचवी कक्षा तक कुछ शब्दों का मतलब भी सीखने लगा। मिडिल स्कूल तक आते-आते नए शब्दों का ज्ञान बढ़ाने की कोशिशों में आँखों पर भी ज़ोर पड़ने लगा और सेकेंडरी स्कूल में चश्मा भी लग गया। किशोरावस्था में कुछ सच्चे, कुछ झुठे शब्द जाल भी रिश्तों में बुनने लगा और देखते-देखते शरारतों में ही जवान हो गया।" उनकी बातें सुन लगा काफी पढ़े-लिखे लगते है अंकल जी और अपनी ज़िंदगी जी है, ना की सिर्फ गुज़ारी है।

"अंकल आप चुप क्यों हो गए, बताओ ना आगे क्या हुआ !"

"आगे बेटा जवानी से अधेड़ होने तक चश्में से देख शब्द और उनकी बारीकियाँ भी जानने लगा, इस तरह आँखों का नंबर भी और बढ़ने लगा।

"फिर !" मेरी उत्सुकता इतनी बढ़ गई की लगा यार, यह तो पूछा ही नहीं कहाँ रहते हैं अंकल आजकल कौन-कौन है घर में इनके !

तभी अंकल की आवाज़ ने चौंका दिया, "क्या सोच रहे हो, मैं यहीं पास में एक वृद्धाश्रम में ही रहता हूँ। तुम्हारे से थोड़ा बड़ा एक लड़का है मेरा अपने परिवार के साथ दिल्ली रहता है। बस और क्या, फिर ज़िंदगी में दौड़ रुक गई, वक़्त तो रुकता नहीं, यह कोई हाथ की घड़ी तो नहीं जिसे आगे पीछे कर लें। बुढ़ापे की शुरआत होते-होते मुझे रिश्तों के शब्द धुँधले दिखने लगे। फिर वृद्धाश्रम में जो जिए स्पर्श के एहसास लगा, अब नहीं है ज़रुरत और शब्द पढ़ने की।" चश्मा उतार कर देखा, "जानते हो बेटा पूरी ज़िंदगी के सफर में एक एहसास मुझे मिला जो बिकाऊ नहीं था। बता सकते हो क्या है वो ?"

अंकल के सवाल ने मेरी ऐसी-तैसी कर दी, सारी पढ़ाई तेल लेने गई। अंकल बोले, "परेशान मत हो इंसानियत बाज़ार में नहीं मिलती, मुझे सब रिश्तों और शब्दों से ऊपर, इंसानियत ही लिखा मिला। शांति प्रकाश शराफत है वो।"

सोचता रहा...


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama