जिंदगी एक पहेली
जिंदगी एक पहेली
वह शारदा ही थी ..वह उसे कई देर तक देखता रहा ...उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था ..
आज महाशिवरात्रि का दिन है ... शिवलाल अपने साथियों के साथ कुंभ स्नान करने प्रयागराज आया हुआ है ..मेले में लाखों की संख्या में लोग यहाँ से वहाँ एक दूसरे के साथ टहल रहे हैं घाट पर ..और पूजा पाठ कर रहे हैं ...कोई फोटो ले रहा है तो कोई किसी साधु को सुन रहा है। शिवलाल जैसे ही अपने साथ आये हुए साथी लोगों के साथ स्नान करके घाट पर बैठा उसकी नजर शारदा पर पड़ी ...वह शारदा को देखते ही उसकी तरफ चल पड़ा ...पर चलते चलते अचानक उसने अपने कदमों को रोक लिया उसने देखा की शारदा ने भगवे रंग के कपड़े पहन रखे हैं और उसके साथ कई सारे साधु और साध्वियां भी है ..उसे समझ आ गया कि अब वह भी साध्वी बन चुकी है वह सोच में पड़ गया कि अचानक से यह सब कैसे ... वह उसके पीछे पीछे चल पड़ा और एक जगह किसी आश्रम में उसे जाते देख वह भी उस आश्रम में चला गया ..और वहाँ पहुँचते ही कुछ साधुओं की उस पर नजर पड़ी और उन्होंने उसे रोककर पूछताछ की ...उसने अपना नाम बताया और वहाँ से निकल गया ..और जाते जाते आश्रम का नाम नोट कर लिया।
रास्ते में मेले में एक चाय की दुकान पर बैठकर शारदा के बारे में सोचने लगा ... शारदा उसकी दूसरी पत्नी थी .. उम्र में उससे 15 साल छोटी थी ... आज से लगभग 21 साल पहले शारदा की और उसकी शादी हुई थी तब शारदा की उम्र 26 साल थी और शारदा की भी यह दूसरी शादी थी ..पहली शादी ज्यादा निभी नहीं शारदा की कुछ दिनों में तलाक हो गया था .. शारदा के माँ-बाप ने शारदा की शादी शादीशुदा शिवलाल से करा दी ...शादी के पाँच साल में ही दोनों के तीन बच्चे भी हो गये ...भले ही दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनते थे पर शारदा को कभी खुशी नहीं मिलती थी ...एक हमउम्र साथी की तलाश हमेशा उसके मन में थी .. और इसी तलाश ने उसे एक दिन उसे एक हमउम्र से मिलवा दिया .... हुआ यूँ कि कामकाज सही ना चलने पर शिवलाल ने दूसरे शहर की तरफ रुख किया और इत्तेफाक से वहाँ नये शहर में मकान मालिक के बेटे से शारदा की बातें और जान पहचान बढ़ने लगी ..वह मुस्लिम परिवार से था ..और वह भी शादीशुदा ही था ..शारदा उससे रोज बाते करने लगी और धीरे-धीरे दोनों में लगाव बढ़ता चला गया .. और एक दिन मौका देखकर शारदा शिवलाल और बच्चों को छोड़कर उसके साथ भाग गयी। शिवलाल ने काफी कोशिश की ढूंढने की पर कुछ दिन तक कोई अता पता नहीं ...मकान मालिक ने अपने बेटे को भगा ले जाने की वजह शारदा को मानते हुए उसे मकान खाली करके कहीं और जाने को कह दिया ... मौहल्ले में शिवलाल किसी से नजर भी ना मिला पाता इसलिए उसने भी मकान किसी और जगह देखने में ही भलाई समझी ...वह अपने तीनों बच्चो को लेकर किसी दूसरे मौहल्ले में जा बसा ..सात महीनो बाद शारदा और वह आदमी ( इंसाफ ) दोनों लौट आये ..शारदा पेट से थी ..इंसाफ ने उसे गर्भवती करके वापस अपने घर लौट आया और साथ में शारदा को भी ले आया पर इंसाफ के माँ-बाप ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया और शिवलाल को फोन करके उसे ले जाने को कहा ...
शिवलाल उसे लेने वहाँ पहुँच गया और पहुँचते ही देखा वहां काफी भीड़ जमा है ... उसकी नजर शारदा पर पड़ी ..और फिर उसके बढ़े हुए पेट पर ...शिवलाल के पास कहने को कुछ नहीं था ...वह शर्मिंदा होकर वहीं कुछ देर बैठ गया और उसकी आँखें भीग गयी ...एक ज्वालामुखी सा फट गया हो जैसे उसके भीतर ..उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करें ..सड़क पर तमाशा करने से अच्छा होगा कि वह शारदा को अपने घर ले जाये ...पर शारदा तैयार ही नहीं हो रही थी इंसाफ को छोड़कर शिवलाल के साथ जाने को और इंसाफ अपने माँ-बाप, बीवी और अपने धर्म की खातिर शारदा को अब अपनाने से इन्कार करने लगा .. कैसे भी करके शिवला,ल शारदा को खींचकर अपने घर ले गया ...पर अब घर ले जाकर करें तो क्या करें ...गयी हुई इज्जत तो अब वापस आने से रही ...बच्चे अपनी माँ को वापस देखकर खुश तो थे पर वह यह नहीं समझते थे कि उनकी माँ ने कोई बड़ा गुनाह कर दिया है। शारदा को अपने बच्चों से मिलने की कोई खुशी नहीं थी ...वह रोती रही वैसे ही और शिवलाल घर में उसके सामने अपना माथा पकड़कर बैठकर उसे देखता रहा ...उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अब करना क्या है ..और शारदा के गर्भ में जो बच्चा पल रहा है उसका वह क्या करे ....शिवलाल ने अपने रिश्तेदारों को अगले दिन बुलाया और उनसे सलाह माँगी तो कुछ ने कहा कि इसके बाल मुंडवा दो और इसे घर में कैद करके रख लो .. किसी ने उसे खूब पीटने की सलाह दी तो किसी ने उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को गिराने की सलाह दी तो किसी ने कहा कि इसे जहर देकर मार दो क्या करोगे ऐसी बीवी को रखकर .... रिश्तेदारों में दो तीन महिलाएँ भी थीं जिन्होने शारदा को पीटा भी और एक महिला ने कैंची लाकर शारदा के बाल भी कतर दिये और उसे प्रताड़ित करने लगी।
शिवलाल यह सब देख रहा था ....उसका मन चाहता था कि वह उन रिश्तेदारों को रोके पर रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था वह उन रिश्तेदारों की सुनते सुनते कभी शारदा को तो कभी अपने बच्चो को देखता। बच्चे सब देखकर रो रहे थे उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह सब हो क्या रहा है और क्यों। यह सब उनकी माँ को मार रहे हैं ...शिवलाल भी मन ही मन बहुत रो रहा था पर जाहिर नहीं होने दे रहा था ...पर शारदा पर इन सबका कोई असर तक नहीं हो रहा था ...उसे तो बस इंसाफ और अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की ही फिक्र हो रही थी .. कुछ रिश्तेदारों ने कहा कि यह शहर छोड़कर किसी और शहर में बस जाओ और उससे पहले कुछ दिन गांव हो आओ ..अब शिवलाल गांव जाये तो भी क्या मुँह लेकर ... वह दूसरे शहर के लिये निकल पड़ा शारदा और बच्चों को लेकर ...और बेंगलुरू में रहने लग गया ... बेंगलुरु पहुँचते ही उसने शारदा को अस्पताल ले जाकर बच्चा गिराने की बात की और डाक्टरों से इस पर बात की पर शारदा इसके लिये तैयार नहीं थी ..और एक दो दिन बाद वह फिर से एक दिन मौका देखकर वहाँ से भाग गयी ... वह भागकर कहाँ गयी यह शिवलाल को कभी पता ही नहीं चला ..उसने इंसाफ के यहाँ भी जाकर पता लगाया पर वह वहाँ नहीं गयी ...हफ्ते दस दिन शारदा को ढूंढने के बाद निराश हौकर उसने हार मान ली और अपने बच्चो को लेकर गांव चला गया ..इस बार उसने शारदा के जाने की पुलिस कंप्लेंट भी नहीं की और उसे भूल कर अपने बच्चो पर ध्यान देने में ही समझदारी समझी ...और वह अपने बच्चों को पढ़ाने और उन्हें अच्छा भविष्य देने में लग गया और शारदा को भूल गया पर भूलना इतना आसान थोडी था ..रह रहकर मन मे कई सवाल आते रहे ..साल बीतते गये ..और इतने साल बाद शारदा का यूँ मिलना ..
वह अपने सब सवालों का जवाब तलाशने लगा ..उस रात उसे बिल्कुल भी नींद नहीं आयी उसे अगले दिन का इन्तजार था ..उसने ठान लिया कि वह अगले दिन आश्रम जाकर शारदा से मिलेगा और उससे अपनी गलती पूछेगा कि क्यो उसने उसके साथ यह सब किया पर अब परिस्थिति विपरीत थी वह एक साध्वी बन चुकी थी और यूँ किसी साध्वी से मिलना और सवाल जवाब करना आसान नहीं था ...फिर भी हिम्मत जुटा कर शिवलाल आश्रम पहुँचकर शारदा का इन्तजार करने लगा और आश्रम के अन्य साधुओं से शारदा से मिलने की इच्छा जाहिर की पर अब उसका नाम शारदा नहीं था अब लोग उसे साध्वी दिव्यप्रभा नाम से जानते थे।
शारदा को यह नाम उस आश्रम के एक साधु ने दिया था जिसने उसे शरण दी थी और उस साधु के अलावा किसी को शारदा के इस नाम की जानकारी बिल्कुल नहीं थी .. शारदा के आते ही शिवलाल उसे देखने लग गया ...उसकी आँखें भीग गयी थी ...शारदा ने शिवलाल को देखकर पहचानने से इंकार कर दिया और कहा उसे नहीं पता यह कौन है और वह अब मुक्ति के मार्ग पर सत्य की तलाश में साध्वी बनकर ही अपना जीवन बिताना चाहती है और उसे अपने पुराने जीवन से कोई लेना देना नहीं है।
शिवलाल यह सब देखकर रोने लगा और शारदा को अपनी पत्नी कहकर साधु संतों से झगड़ा करने लगा ...इस पर वहाँ मौजूद लोगो की भीड ने उसे खूब पीटा और उसे उठाकर पुलिस के हवाले कर दिया ...वह पुलिस स्टेशन पर पुलिस वालो से मिन्नतें करने लगा कि उसे उसकी पत्नी से मिलने दिया जाये पर पुलिस वालों ने कहा कि मान भी लें कि वह पहले तुम्हारी पत्नी थी पर अब वह एक साध्वी है और अब यह सब नामुमकिन है यह अब एक धर्म से जुड़ा मामला है और इससे धर्म की बदनामी होगी और तुम्हे एक शर्त पर ही रिहा किया जा सकता है तुम्हें यह शहर छोड़कर जाना पड़ेगा ... पुलिस वालों ने समझा कर उसे रेलवे स्टेशन ले जाकर ट्रैन में बिठा दिया ....पर शिवलाल के मन मे जो सवाल थे वह अब भी रह रहकर उठ रहे थे ...गाड़ी कुछ देर चलने के बाद ही शिवलाल ने जंजीर खिंचकर ट्रैन रोक दी और ट्रैन से उतर गया ..अब वह शारदा का पीछा करने लग गया ..शारदा यह सब नोटिस करने लगी पर उसने किसी से शिकायत नहीं की ...एक दिन घाट पर शारदा ने शिवलाल से मिलकर उससे अपनी बाकी की जिंदगी की सारी बातें बतायी ... और उससे अपने किये की माफी माँगी पर माफी से शिवलाल की जिंदगी अब बदलने से रही ..शिवलाल ने उसे यह सब छोड़कर फिर से अपने साथ चलने को कहा पर शारदा ने कहा कि तुम तो बड़प्पन दिखाकर मुझे अपना लोगे पर समाज और तुम्हारे रिश्तेदार उनका क्या ..उन्हे तुम क्या जवाब दोगे .. शिवलाल से इस बात का कोई जवाब देते ना बना ... शिवलाल ने उसके उस बच्चे के बारे में पूछा तो शारदा ने कहा कि उसे वह किसी नदी के घाट पर रख आयी थी और फिर उसके बाद उस बच्चे का क्या हुआ उसे कुछ नहीं पता ....और इसके लिए भगवान उसे कभी माफ नहीं करेगा ..उन सब पापो का प्रायश्चित करने दो मुझे ... मुझे अब यही रहने दो और तुम लौट जाओ और वादा करो अब दोबारा कभी नहीं आओगे मेरी जिंदगी में ...शिवलाल चुपचाप उसे देखता और सुनता रहा और वादा करते ना बना उससे ...
इतने में शारदा उठकर जाने लगी तो शिवलाल ने उसका हाथ पकड कर रोकने की कोशिश की पर वह नहीं रुकीं और कुछ देर में वहाँ से और शिवलाल की जिन्दगी से भी चली गयी ..वह घाट पर बैठा रहा काफी देर तक ..एक बार तो उसका मन किया कि वह जाकर नदी में डूब जाये पर डूबने से क्या होगा ...वह रात भर वही बैठा रहा और फिर अगले दिन सुबह ट्रैन में बैठकर अपने गांव के लिये निकल पडा और रास्ते भर में बस वही सब उसके भीतर चलता रहा ...और अगले दिन सुबह वह और ट्रैन दोनों अपने अपने स्टेशन पर पहुँच गये और आगे के सफर के लिये दोनों निकल पड़े ... शिवलाल स्टेशन से सीधा अपने घर पहुँचा और घर पहुँचते ही दरवाजा बड़े बेटे ने खोला और शिवलाल के चरण छुए तीनों बच्चो ने ... शिवलाल उनके चेहरे को देखकर सब कुछ भूल गया ...भूल गया कि वह उनकी माँ से मिला था और भूल गया कि अब वह कहाँ रहती है ... उसे अब उससे कोई वास्ता नहीं था अब उसे बस अपने बच्चों के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था ...वह भीतर जाकर कुर्सी पर बैठ गया और हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आ गयी बच्चो को खुश देखकर....।