पहला प्यार

पहला प्यार

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बात उन दिनों की है जब मैं कक्षा छह में था..उन दिनों वी.सी.आर. का दौर था...विडियो केसेटस् लाकर हर रोज फिल्में देखना, यह फिल्मो का कीड़ा भी शायद उसी दौर में मेरे दिमाग में घुसा था...

उन्हीं दिनों उसके यहाँ भी वी.सी.आर. आया था तो हफ्ते में 2-3 बार उसके यहाँ फिल्में देखने जाता था ..अरे ..मैं तो अपनी इस कहानी की हिरोइन का परिचय देना तो भूल ही गया...

वह दिखने में बहुत सिम्पल सी, स्वीट सी और साँवली सी थी..

उम्र में मुझसे 3 साल बड़ी थी..नाम लिखना तो चाहता हूंँ यहाँ पर मेरी वजह से उसे कोई समस्या न हो जाये ..तो चलिये अब हिरोइन मान लिया है तो फिल्मी नाम ही दे देते हैं .."श्री देवी".. वह जब हँसकर मुझे देखती तो मानो ऐसा लगता था जैसे किसी फिल्म में नायक से नायिका का परियच वाला सीन हो रहा है और बेकग्राउंड में कहीं ऋषि कपूर गिटार लिये गीत गा रहा है .. मैं अक्सर उन दिनों उसके यहाँ फिल्में देखने जाता था वह 80 का दौर बुरी फिल्मों का दौर था। एक से बढ़कर एक बकवास फिल्में आयी थी उस दौर में .. पर फिल्मों से ज्यादा मैं उसे देखने जाता था और उन ढाई तीन घंटे की फिल्म में मेरी नजरें फिल्म की नायिका की बजाय मेरी कहानी की नायिका पर ही ज्यादा रहती थी ...बस उसे ही देखता रहता था ...और जब वह कभी पलटकर देखती तो यहाँ वहाँ देखने लग जाता....मैं उन दिनों दिखने में आशिकी फिल्म के राहुल रॉय जैसा था पर छोटा सा था ..उम्र लगभग 11-12 साल ..

कुछ महीनों बाद हमारे घर पर भी वी.सी.आर. आ गया और फिर विडियो कैसेटस् की अदला बदली का दौर शुरू...पर अब उसके यहाँ जाकर फिल्मे ंदेखने का सिलसिला कम होने लगा..और फिर बुरी से बुरी फिल्में आने लगी तो थोड़ा सा फिल्मों का क्रेज भी कम होता गया..

उसका घर मेरे घर से सिर्फ 70-80 कदमों के फासले पर ही था ..पर साल दर साल बीतते बीतते वहाँ जाना कम होने लगा और सिर्फ त्योहारों पर ही जाना हो पाता था ..पर मुझे आज भी याद है दिन में 100 दफा उसके घर के सामने से गुजरता था इस उम्मीद पर कि कहीं तीसरी मंजिल की बालकनी पर वह दिख जाये और कभी कभी घंटों अपने घर के बाहर किसी ना किसी बहाने से खड़ा रहता उसकी सिर्फ एक झलक देखने के लिये जब वह स्थानक जाती थी (वह जैन थी)

और इसी तरह मेरे इंतजार करते करते उसके कदमों की चाल ने तेज रफ्तार पकड़ ली और साल 1992 आ गया ...मैं कॉलेज में आया था और वह अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी ..एक दिन अपने घर पर उसकी शादी का कार्ड देखा ... बहुत फील हुआ .. तारीख तो याद नहीं पर शायद नवंबर या दिसंबर का महीना था ...कार्ड क़ाफी देर तक देखता रहा और पेन लेकर लड़के का नाम काटने लगा ... हालांकि मैं कभी उसे कह नहीं पाया कि मुझे उससे प्यार था। (अमोल पालेकर के किरदार ने तब से जकड़ रखा है मुझे ) और उसने कभी मुझे इस नजरिए से देखा भी नहीं था।

वन साउड लव में अक्सर ऐसा ही होता है ... फिर शादी का दिन भी आ गया...शादी के रिसेप्शन में उसे देखकर देखता ही रह गया..बेहद खूबसूरत लग रही थी वह ...मैं स्टेज के सामने कुर्सी पर बैठ गया और घंटों उसे देखता रहा ...जानता था कि अब उसके दर्शन ना जाने कब नसीब होंगे ...पर इतनी देर में ही पापा की एंट्री हुई और पापा ने कहा- "छोरा खानों जीम ले पछै घरै चाला।"

मन तो बहुत फील कर रहा था पर क्या करता ..अपना ग़म एक साइड और पापा का आदेश एक साइड ..तो उठकर खाना खाने चल पड़ा ...और खाना खाते ही वहाँ से लौट आया...उस दिन सारी रात मन ही मन बहुत रोता रहा ... ऐसा लगता था जैसे जिंदगी खत्म हो गयी और जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं ...पर धीरे धीरे सब कुछ नॉर्मल होता गया...

आज भी वह इतने वर्षों के बाद भी वैसी की वैसी ही खूबसूरत है... मुलाकात साल में एकाध बार उससे अब भी किसी ना किसी शादी के रिसेप्शन में ही होती है ...घंटों तो उसे अब देख नहीं पाता पर हाँ कुछ मिनट उसके आसपास मंडरा जरुर लेता हूँ और ऐसे पल में ही पीछे से अचानक पत्नी की आवाज़ कानों में सुनाई देती है.." सुनो, ऐ परायी लुगाइयाँ के आगे लारै मत फिरो .. जीम लिया हो तो घरै हाला ..काल सुबह टाबरा के स्कूल है "

और मन ही मन सोचने लग जाता कि यार उन दिनों के पापा वाले डॉयलाग अब यह बोल रही है ...और फिर मन ही मन मुस्कुराता हुआ विथ फैमिली (भैया सिर्फ अपनी) घर की और चल पड़ता .. एक नजर जी भर कर देखते हुए उसे...आखिरी मुलाकात उससे पिछले साल दिसंबर में ही हुई थी और आज दिसंबर का पहला दिन है।।


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