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अग्नि परीक्षा

अग्नि परीक्षा

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अवनी आज बहुत खुश थी। होती भी क्यूँ ना...नौकरी का पहला दिन जो था। ढंग से तैयार होकर शालीन वस्त्रों में जाना चाहिए, यह सोचकर उसका हाथ सीधे कलफ लगी कॉटन की साड़ी तक पहुँच गया।

साड़ी हाथ में उठाई तो एक एक करके अपने स्कूल की अध्यापिकाओं के चेहरे नजर में घूमने लगे। सरला गुप्ता मैम....बिलकुल छरहरे बदन व सौम्य व्यक्तित्व की धनी। सदैव शालीनता से बंधी सूती साड़ी पहनती थी। इस साड़ी की कलफ से उनका रुतबा भी सदा कड़क ही नजर आता था। अवनी हमेशा सोचा करती थी कि बड़ी होकर वह भी ऐसी ही अध्यापिका बनेगी और ठीक ऐसे ही शालीन व सौम्य लिबास में स्कूल जाया करेगी।

पुरानी यादों ने पहरा जो डाला तो साड़ी कब बंध गई..पता तब चला जब साहिल ने आवाज लगाई, "अनु...आज ही ज्वाईन करना है कि नहीं।"

अवनी ने अपने आपको आदमकद दर्पण में निहारा तो अपने आप पर ही गर्व हो आया। वह बिल्कुल ईमानदार, कठिन परिश्रमी और अपने कार्य के प्रति समर्पित अध्यापिका बनेगी। पर्स उठाने से पहले घर में बने पूजा घर की ओर उसके कदम अनायास ही बढ़ गये थे।

हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि हे ईश्वर इतनी शक्ति व बुद्धि देना कि अपने कार्यस्थल पर अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से कर सकूँ।

बाहर साहिल अपनी मोटरसाइकिल लिए उसका इन्तजार कर रहा था।

अवनी ने सरकारी स्कूल में द्वितीय श्रेणी अध्यापिका के रुप में नौकरी ज्वाइन कर ली। सुबह जल्दी उठना, बच्चों के टिफिन तैयार करना, साहिल का नाश्ता बनाना, घर की साफ सफाई आदि सभी घर के काम निपटा कर समय पर विद्यालय पहुँचना उसका रुटीन बन गया था। स्कूल पहुँचकर मानों वह घर को भूल सा जाती। कक्षा में अपना विषय पढ़ाने के साथ-साथ बच्चों को आचार-व्यवहार, नैतिकता सिखाती व अपने परिवार के लोगों को भी ये सब सिखाने को कहती।

सही को सही, गलत को गलत कहना तो विरासत में मिला था और ससुराल में भी पोषित हुआ था। अवनी का समय पर आना, समय पर कक्षाएँ लेना, अभिभावकों से सम्पर्क में रहना, सभी स्टूडेन्टस की चहेती बन जाना, ये सब स्टाफ को जल्दी ही खटकने लगा। लोग तरह-तरह के हथकंडे अपनाने लगे उसे परेशान करने के। किसी भी सामूहिक भागीदारी वाले कार्य में उसे हमेशा अलग रखा जाने लगा।

"हाँ,भई नये-नये मुल्ला जोर से बांग देते हैं।" ,कहकर उस पर तंज भी कसे जाते। स्टाफ के सभी सदस्य उससे अलग ही बैठते। दो वर्ष बीतने को आए...अवनी सर्दी, गर्मी बरामदे में कुर्सी लगाकर अकेली ही बैठती। खाली कालांश में...अगर खाली मिलता (अक्सर कोई अध्यापक/अध्यापिका अनुपस्थित होता तो उसका काम भी अवनी को ही दे दिया जाता) हर तरीके से उसे झुकाने की कोशिश की गई। जब भी कुछ नियम विपरीत होता अवनी चुप नहीं बैठती सो कामचोर लोगों को खटकता था।

फिर एक बात यह भी कि वह किसी की चापलूसी भी नहीं करती। कार्यस्थल का बढ़ता भार और साथ ही गृहस्थी की जिम्मेदारी। बच्चे भी छोटे लेकिन साहिल का साथ उसे इन सबसे जूझने की शक्ति देता था।

वर्ष दर वर्ष अवनी का विषय परिणाम बेहतर होता जा रहा था। सभी विद्यार्थी व अभिभावक उसे बहुत सम्मान देते।यह सभी के बर्दाश्त के बाहर था....लेकिन अवनी संतुष्ट थी कि वह अपना काम ईमानदारी से कर रही थी

घर व कार्यस्थल के बीच तालमेल भी बैठने लगा था। बच्चे भी कुछ समझदार होने लगे थे। अब उसे ज्यादा परवाह नहीं थी उन लोगों की....। जीवन कुछ पटरी पर आ रहा था। दोनों के कमाने से आर्थिक मजबूती भी आ रही थी।

तभी अचानक एक दिन बाबूजी को ब्रेन हेमरेज हो गया तो उन्होने खाट पकड़ ली। माताजी यह सदमा सहन नहीं कर पाई और उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया। साहिल व अवनी ने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी। लेकिन कितने दिन.....अवनी की नौकरी नई थी सो पुनः काम पर लौटना पड़ा। इतने दिन बाद जा रही थी सो रुटीन भी गड़बड़ा गया था और फिर पीछे घर गृहस्थी की चिंता। जैसे-तैसे घर से निकली।

सोचती जा रही थी स्टूडेन्टस को पढ़ाई का काफी नुकसान हो गया उसकी छुट्टियों की वजह से। अब वह कोशिश करेगी सब भरपाई करने की। क्लास टैस्ट लेगी ताकि कमजोर छात्रों को अतिरिक्त कक्षाएँ दे सके। कार्य योजना का खाका तैयार हो चुका था। इसी उधेड़ बुन में कब स्कूल पहुँच गई पता ही नहीं चला...।

हाजिरी रजिस्टर में हस्ताक्षर कर निकलने को हुई कि प्रधानाचार्य ने एक लिफाफा थमाया जिसमें उसके तबादले के आदेश थे। अब उसे अपने घर से 250 किमी दूर एक अन्य जिले में ड्यूटी ज्वाईन करनी थी। अवनी की अग्नि परीक्षा शुरु हो चुकी थी।


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