परमेश्वरी
परमेश्वरी
सन् 1993 का वर्ष स्वर्णिम था मेरे लिए; अनेक बाधाएँ पार करने के पश्चात मैंने राजकीय सेवा में पदार्पण जो किया था। एक स्कूल अध्यापिका के रूप में। विश्वास नहीं हो रहा था। न मुझे न किसी और को। कारण कक्षा 10 में ही विवाह हो जाने के बावजूद स्नातकोत्तर तक की शिक्षा पूरी की व साथ ही बी.एड, इसके पश्चात इस बीच दोनों बेटियों का जन्म हो चुका था, अतः मेरे लिए यह एवरेस्ट फतेह से कम न था।
नौकरी शुरू होने के बाद भी रोजाना नई-नई चुनौतियाँ सामने आती। आदत थी ईमानदारी से काम करने की सो लोगों को खटकने लगा। लेकिन मारवाडी़ में एक कहावत है, "जां का पड़ग्या सुभाव, जासी जीव स्यूँ" (आदतें मृत्यु प्रयन्त बनी रहती हैं।)
खैर...एक बच्ची जो कि कक्षा 3 में थी बड़ी सकुचाई, हमेशा एक उंगली के नाखून चबाती रहती। कपड़े भी मैले व पुराने से। सर्दी में भी एक छोटी सी शर्ट व नेकर। उसे देखती तो बहुत पीड़ा होती। धीरे-धीरे ंमैने उसे अपने विश्वास में ले लिया। पूछने पर परमेश्वरी ने (यही नाम था उसका) बताया कि दीदी मेरे घर में लड़कियों को न तो अच्छा पहनने को दिया जाता है न खाने को। मेरी आँखें फटी की फटी रह गई।
मेरी रूचि परमेश्वरी में और बढ़ गई। 5वीं कक्षा अच्छे अंको से पास की उसने। इसी बीच मेरा पदस्थापन सैकेण्डरी स्कूल में हो गया। लेकिन वहीं उसी गाँव में। परमेश्वरी नहीं दिखाई दी। बहुत दिन बीत गये।हरीराम (उसका भाई) से पूछा तो पता चला कि परमेश्वरी ने पढ़ाई छोड़ दी। उसकी शादी होने वाली है। मेरा दंश हरा हो गया। कैसे हो सकता है ये। किसी छात्र को लेकर उसके घर पहुँची लेकिन टका सा जवाब।
हार नही मानी मैंने। दो वर्ष बीत गये। परमेश्वरी की सगाई भी नहीं हुई तो शादी कैसे होती। तीसरे वर्ष मेरी मेहनत रंग लाई। सीधा कक्षा 8 में प्रवेश लिया परमेश्वरी ने। बहुत खुश थी वो और मैं भी। आत्मविश्वास भी देखने लायक था।
मेरा प्रमोशन व स्थानान्तरण हो गया। कई वर्ष बीत गये। बी.एड. करने वाले छात्र-छात्राओं के प्रैक्टीकल चल रहे थे मेरे स्कूल में। प्रार्थना स्थलीय कार्यक्रम भी बी.एड स्टूडेन्ट ही संभालते। एक बी.एड. छात्रा संचालन करती प्रार्थना स्थलीय कार्यक्रम का.... ओजपूर्ण व आत्मविश्वास से परिपूर्ण। बड़ा अच्छा लगता।
एक दिन रिसेस पीरियड में सभी स्टाफ सदस्य धूप सेंक रहे थे तभी वह छात्रा आई और मेरे चरण स्पर्श किए। आशीर्वाद देते ही वह बोली, "दीदी आपने पहचाना मुझे।"
मैंने कहा, "याद नही आ रहा।" तो बोली, "मैं कभी आपको भूल नहीं पाई। दीदी मैं परमेश्वरी..."।
आँखों से आंसू बह निकले मेरे। सभी स्टाफ सदस्य स्तब्ध। गले से लगा लिया मैंने उसे। इतना परिवर्तन....उसके टीचर जो साथ थे सब जानते थे पूरा प्रकरण...सभी अभिभूत..
आज भी मेरा यह अभियान जारी है। जब भी किसी बच्ची के माता-पिता उसकी पढ़ाई छुड़वाने की बात करते हैं तो बच्चियां तुरंत चली आती मेरे पास...।
उस समय मल्टी मीडिया मोबाइल नही थे इसका दुख है क्योंकि परमेश्वरी की एक भी फोटो मेरे पास नहीं।
वो भी कहीं न कहीं मेरे इस अभियान को निश्चित ही आगे बढ़ा रही होगी...।।