दिल की बातें
दिल की बातें
दिल वाला शनिवार
"दिल की बातें दिल ही जाने
कब समझी है ये बातें दुनिया नें"
दुनिया समझे ना समझे मगर "दिल है कि मानता नहीं"
मचलता है, फुदकता है, उड़ता है और कई बार तो टस से मस नहीं होता...."दिल भी इक जिद्द पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह, या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं" बिलकुल इसी तर्ज़ पर।
दिल की बातें, कहाँ पकड़ में आती दिल की बातें, जैसे यह भटकता इसका पीछा करना तो बहुत मुश्किल। लेकिन एडमिन साहिबा का फरमान ही ऐसा कि पकड़कर बैठा लिए इस बेअदब को। आमिर खान की तरह सुन सुना करते करते यह कुछ बताने को तैयार हो गया, लेकिन ये क्या...इसका तो कोई आर पार नहीं, कोई सीमाऐं नहीं....लिखना असम्भव लगा मुझे। लेकिन लिखना तो था, क्योंकि दिल तो बच्चा है जी।
महफूज़ है सीने में पुख्ता बहुत है।
मगर जरा सी बात पे दिल दुखता बहुत है.."दुखता है जब भरी सर्दी में फुटपाथ पर सोते लोगों को देखती हूँ, देखती हूँ इक गर्भवती स्त्री को सिर पर ढेर बोझा उठाऐ, दुखता है बहुत जब एक कमतर व्यक्ति पा जाता है ओहदा अपनी पहुंच या पहचान के दम पर और ताकता रह जाता वह जो वास्तव में इसका हकदार था। दिल दुखता है जब एक कामचोर इंसान केवल चापलूसी या लल्लाचप्पी कर शाबाशी ले जाता है और फटकार हिस्से आती है उस कर्मठ व्यक्ति के। बहुत दर्द होता है जब रसूख वालों के काम बिना रिश्वत के हो जाते और दाल रोटी की जुगत लगाते व्यक्ति को लोन लेकर रिश्वत देनी पड़ती है।दिल दुखता है जब मन के काले सफेद झक्क वस्त्रों में अपना कालापन ढक लेते हैं और मन के धवल के चेहरे पर पोत दी जाती है कालिख....वही दर्द तब भी होता जब निर्दोष की चढ़ जाती बलि और दोषी लोग कुर्सी पा जाते। बहुत पीड़ा होती जब एक वृद्ध साईकिल चालक को लगभग धकेलती एक चमचमाती कार आगे बढ़ जाती, बहुत कुछ है जिसे रोज़ करीब से देखती और दाँतों तले उंगली दबा लेती। कोफ्त बहुत होती लेकिन..."बदजुबानी जो कर जाते तो मर जाता जमीर....बचाने को ज़मीर" अनु" ये ज़ख्म पालते रहे।"
दिल करता बच्चा बनने को, लेकिन पीहर में सबसे बड़ी और ससुराल में सबसे छोटी, तो बचपना आने से पहले ही ग़ायब हो गया।ज ब हमारे खेलने के दिन थे तब हमारी गोद में बेटियाँ खेलने लगी थी। उम्र से पहले परिपक्व हो गई। लेकिन कई बार दिल सोचता कि अगर ऐसा न होता तो भी क्या मैं बचपना कर पाती, शायद नहीं। हर इंसान का जीवन जीने का तरीका अलग अलग होता....कुछ लोग न कहने वाली बात भी कह जाते और कुछ कहने वाली भी न कह पाते। कुछ लोग दूसरे के तंदूर पर ही रोटियाँ सेक लेते और उसे एहसास भी नहीं होता। कुछ अपना उल्लू सीधा करने को गधे को बाप कह लेते, कुछ अपने बाप को भी न कह पाते।
इंसान तो सभी हाड़ मांस के हैं, कबाडा़ तो इस दिल का ही है। यही भिन्न भिन्न खेल खिलाता....यही सबको अलग अलग पहचान दिलाता। भले दिलवाला, काले दिलवाला,दिलदार, दिलजला, दिलचोर, गीतों में कह दिया "कोई चाँदी के दिलवाला, कोई सोने के दिलवाला, शीशे के जैसा मेरा दिल। "हाँ, यह ज़रुर है कि दिल इतना कच्चा होता कि रंग बहुत जल्दी चढ़ता इस पर, तो ख्याल रखिएगा....सबसे स्नेह, सबसे प्यार, सबसे समानता, सबसे सदभावना, सबसे सहानुभूति हम बनाऐ रखें। आखिर ये इंसान का दिल है, इंसान में बुद्धि है, यही बुद्धि हमें भेड़ों से अलग करती। तो सबकी अपनी एक अलग पहचान हो, नकल करना बुद्धि को भ्रमित करता, पथभ्रष्ट भी करता। शिक्षित -अशिक्षित का फर्क भी नजर आना चाहिए, सिर्फ पहनावे में नहीं... विचारों में भी। महिला का दिल महिला के अधिकारों के लिए धड़कना चाहिए, महिला अत्याचारों के विरुद्ध धड़कना चाहिए। एक महिला कई पीढ़ियों की सोच बदल सकती, सोच सकारात्मक और दिल आध्यात्मिक(धार्मिक नहीं) होना चाहिए। प्रार्थना को हम जीवन में अहम स्थान दें, बहुत शक्ति है प्रार्थना में, यही हमारे दिल के तार उस परम शक्ति से जोड़ती और दिल को मजबूत बनाती। स्वयं के लिए तो सभी करते, औरों के लिए करके देखिए, दिल बाग बाग हो जाएगा। बागों में ही बहार आती, दिन का कुछ समय, आय का कुछ हिस्सा, दिल की कुछ भावनाएं औरों के लिए समर्पित करें, कहते हैं देने से बढ़ता है, चाहे धन हो या मन हो।बच्चों के लिए धन सम्पदा जमा करने की बजाय संस्कार जमा कीजिए, ये ऐसी पूंजी है जिसे जितना खर्च करेंगे उतनी ही बढे़गी। वर्तमान समय की मांग यही है कि आगे आने वाली पीढ़ी में संस्कार के बीज बोए जाऐं....यह कहावत बदलनी होगी कि बेटियाँ संस्कारी होगीं तो परिवार संस्कारित होगा। बेटे भी परिवार का दूसरा पहिया है, वे भी संस्कारवान हों। एक संकल्प लें कि किसी भी विवाह में यह न पूछे...."बेटी वालों नें क्या दिया" और दूसरी बात यह "बेटियाँ ही, बेटा नहीं है क्या।" मैं कभी भी किसी समारोह में इस बात में रुचि नहीं रखती कि उपहार क्या मिले, आधुनिकता में दहेज, छूछक,भात ....ये सब उपहार का नाम ले चुके हैं। हम महिलाएँ अगर यह पहल करेंगी तो "हम बदलेगी, जग बदलेगा।" हर व्यक्ति के प्रति हमारे दिल में सम्मान व सहानुभूति होनी चाहिए, वरना हम में और जानवर में कोई फर्क नहीं।