तबादला
तबादला
आज वह किसी की नहीं सुनेगी, किसी से नहीं डरेगी....ज़िला कलक्टर आज आने वाले हैं निरीक्षण के लिए।सारी सच्चाई वह उनके सामने बयां कर देगी।फिर जो होगा वो देखा जाएगा। तंग आ चुकी थी वह अपने आस पास के काम चोर लोगों से, बिगड़ती अनुशासन व्यवस्था से। दुरुपयोग होते सरकारी बजट से,योजनाओं की खाना पूर्ति से।आखिरकार मां बाप अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर अच्छा आदमी बनने को यहां भेजते हैं।इन बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ अब उससे बर्दाश्त नहीं होता।
कलक्टर साहब के स्वागत की तैयारियां चल रही थी। सब लीपापोती कर अच्छा दिखाने की भरसक कोशिश की जा रही थी। सभी कामचोर लोग खूब मेहनत कर रहे थे, आज मानो पूरा विद्यालय इनके दम पर ही चल रहा हो। ये वे लोग थे जो कभी कक्षा में पढ़ाते नहीं देखे जाते और परीक्षा के समय सांठ गांठ करके नकल के माध्यम से बच्चों को पास करवाने की हर कोशिश करते।अनुपमा के शरीर पर मानो लाखों चीटियाँ चल रही थी।
उसने एक शिकायती पत्र तो तैयार कर लिया था लेकिन सोचा हाथ से लिखे पत्र की हो सकता है इतनी अहमियत न हो सो विद्यालय के सामने ही स्थित फोटो कॉपी की दुकान से उसने वह पत्र फोटोस्टेट करवा लिया।वहाँ बैठा लड़का बोला "मैडम, आप मुझे दे दें। मैं फोटो कॉपी करके भिजवा देता हूं। "अनुपमा को भी लगा इस बीच बच्चियों से स्वागत गायन की थोड़ी और प्रैक्टिस करवा ले।
दस मिनिट में ही एक छात्र वह पत्र कॉपी करवाकर ले आया। अनुपमा बड़ी आश्वस्त थी कि चलो...आखिर सुधार की कुछ उम्मीद तो जगी।
निरीक्षण के दौरान सभी स्टाफ सदस्यों से समस्याएं पूछी गई ...। इसी बीच अनुपमा ने एक पत्र कलेक्टर साहब को दिया। उनके चेहरे पर एक मुस्कान दौड़ गई...इस मुस्कान से वह और भी आश्वस्त हो गई।
अल्पाहार के बाद जब कलेक्टर साहब जाने लगे तो अनुपमा को एक लिफाफा थमाया। उसे पूरा विश्वास था कि अनुपमा को शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम के लिए प्रशंसा पत्र दिया होगा। उसने खुशी खुशी वह पत्र खोला........पढ़ते पढ़ते मानो पैरों तले ज़मीन खिसक गई। यह उसका अन्तर ज़िला तबादला पत्र था।