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Anantram Choubey

Drama

0.4  

Anantram Choubey

Drama

झूठ फरेब

झूठ फरेब

1 min
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झूठ फरेब फल फूल रहा है

इन्सानो को निगल रहा है ।

झूठ फरेब की चकाचौंध मेें

किसी को कुछ नही दिख रहा है ।

झूठ फरेब मक्कारी का

कदम कदम पर डेरा है

न कोई तेरा न मेरा है ।


बाजारो मे रोज रोज

व्यापार यों ही चल रहा है ।

छोटा बड़ा हर पेड़ पौधा

यहाँ पर पनप रहा है ।


झूठ फरेब मक्कारी के

दलाल गली चौराहो मे

खोजते ही मिल जायेगे ।

इन्सानो के बीच मे

भेड़िये यहाँ मिल जायेगे ।

उनके पास मे दया

धर्म न मानवता है

लौंच लौचकर खा जायेगे ।

मानवता इन्सानियत को

घर की खूटी पर टांग देते है ।

झूठ फरेब के धन्धे मे

अपनी रोजी रोटी चलाते है ।

उसी मे पनपते पलते है ।

सभी को उल्लू बनाते है ।

अपना उल्लू सीधा करनेे

भाई को भाई को लड़ाते है ।

उनके झूठ और सच को

सभी समझ नही पाते है ।


झूठे फरेब के इन्जेक्शन

भी बाजारो मे मिल जाते है ।

फल सव्जियो में लगते है ।

शाम को लौकी मे लगा दो

सुबह एक हाथ की हो जाती है ।

झूठ परेब का ये बाजार

ऐसे ही फल फूल रहे है ।

इन्सानो को तो छोड़ो पेड़

पौधो को भी निगल रहे है ।


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